उनसे कह दो, गुजरे हुए गवाहों से-
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा न करे॥
झूंठ तो बोले, मगर झूंठ का सौदा न करे॥
यह पंक्तियाँ हमने अपने बचपन में किसी कवि के मुख से सुनी थी जिसका प्रभाव आज भी मन पर है आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं है । गंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगा । श्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं। उनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया है । लखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही है । यह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात है । भारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा है । इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगे । गलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय है। इसलिए ऊपर लिखी पंक्तियाँ वास्तव में उनके व्यक्तित्व के यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं।
सुमन
loksangharsha.blogspot.com
भाईसाहब जो पकड़ा जाए वो चोर है जो बच गया वो सयाना है....। ये बात तो नारायण दत्त तिवारी के ऊपर भी लागू होती है। मीडिया ने पता नहीं किस बात पर इस गन्दे आदमी की गन्दगी प्रकाश में ला दी और न जाने अनगिनत ऐसे लोग हैं जिनके हगे पर इत्र छिड़क कर सुबह से शाम तक और रात से प्रभात तक दुर्गन्ध छिपाकर उन्हें संत,नेता और न जाने क्या क्या बनाए रखते हैं। कोई आश्चर्य नहीं हुआ इस बात पर कि बेचरऊ बुढ़ऊ तीन औरतों के सहयोग से कुछ कर पाने की स्थिति में आने का मौसम बना रहे थे और मीडिया ने उसे जगजाहिर कर दिया। बूढ़े घोड़े को तीनों चाबुक मार-मार कर दौड़ाने की जुगत भिड़ा रहीं थीं बस ये बात गलत है। राजनीति में चरित्र का स्वच्छ होना हमारे देश में अनिवार्य शर्त नहीं है कागज़ों में कुछ भी रहे
ReplyDeleteजय जय भड़ास