फतेहाबाद (हरियाणा)। फतेहाबाद-गाव नागपुर संपर्क मार्ग पर बसा गाव बनावली का किला अपने अंदर करीब पाच हजार वर्ष पुरानी हड़प्पा संस्कृति का इतिहास समेटे हुए है। खुदाई के दौरान ऐतिहासिक किले में दबी हड़प्पा संस्कृति (2600-2400 ई.) के तीनों कालों के लोगों के रहन-सहन, खान पान, धार्मिक मान्यताओं व अन्य सभी प्रकार की जानकारिया मिलती हैं।
करीब 32 एकड़ क्षेत्र में फैली इस प्राचीन धरोहर की पहचान 1960 के आसपास हुई तथा 1974 से 1988 तक यहा खुदाई का कार्य किया गया। अब इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने के लिए बनावली को विश्व धरोहर में शामिल करने का प्रस्ताव यूनेस्को के पास भेजने का निर्णय किया गया है। अगर यह योजना सिरे चढ़ती है तो निश्चित तौर पर इतिहास की इस महत्वपूर्ण कड़ी को सहेजकर रखा जा सकेगा।
खुदाई के दौरान मिली ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं से हड़प्पाकालीन सभ्यता की बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिल पाई। 1988 के बाद यहा अभी तक किसी प्रकार की खुदाई नहीं हुई है। यहा सबसे पहले हरियाणा पुरातत्व विभाग ने 1974 में खुदाई की तथा 1977 तक समय-समय पर यह कार्य किया जाता रहा। इसमें उसे कुछ विशेष हाथ नहीं लगा। इसके बाद भारतीय पुरातत्व विभाग ने 1977 में इसकी खुदाई का कार्य अपने हाथों में लिया।
विभाग को खुदाई के दौरान अंडाकार तथा गोलाकार चूल्हों से लैस सुनियोजित ढंग से बनाए गए मकान, काच से बने मर्तबान तथा कलश, परात, प्यालिया, कुठार, जार, सोने के मुकने, मूल्यवान पत्थर, मृदभाड, छेलखड़ी, मिट्टी की चूड़िया, शख व ताबा सहित अनेक वस्तुएं मिलीं।
इसके अलावा जानवरों एवं फूलों के चित्रों बने हुए खाना खाने व पकाने के हाडी बीकर, परात, पानपात्र, एस आकार के जार, ईट, चर्ट ब्लेड, हाथी दात और हड्डियों के खिलौने, सोने तथा मूल्यवान पत्थरों के मनके, सोने की पत्ती चढे़ ताबे के आभूषण, मिट्टी से बनी जानवरों की आकृतिया, अभिलेख युक्त मुद्रा तथा मुद्रिकाएं आदि के अवशेष मिले। इसके अलावा जौ के जले अवशेष व मनकों की फैक्टरी भी मिली है।
इससे इस स्थान के हड़प्पाकालीन सभ्यता से जुड़े होने का निष्कर्ष निकाला गया। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे 4 सितंबर 1982 को अपने कब्जे में लिया और 1988 तक खुदाई का काम जारी रखा। खुदाई के दौरान मिले शहर के किले का मुख्य गेट पक्की ईटों से तथा अन्य पूरा हिस्सा कच्ची ईटों से बना है। संग्रहित हो सकेगी
ऐतिहासिक जानकारी-इतिहासकार डा. मुनीष नागपाल ने कहा कि यदि इसे विश्व धरोहर का दर्जा मिलता है तो इससे आने वाली पीढि़यों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। इसी प्रकार से डा. कृष्ण कुमार ने कहा कि यदि ऐसा हो पाया तो इसे संग्रहित करने के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था हो पाएगी। इतिहासकार डा. सुरेंद्र पाल सिंह ने कहा कि ऐसा होने से विश्व में बनावाली के साथ-साथ जिला व प्रदेश का नाम भी रोशन होगा।
बहुत अच्छा लगा जान कर की हरियाणा में भी पुरानी सभ्यता के अवशेष संभाल कर रखने काप्रयास हो रता है .........
ReplyDeleteहरियाणा मे और भी बहुत कुछ मिल सकता है, जरुरत है सुनियोजित उत्खनन की, ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार्।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा व लाजवाब जानकारीं प्रदान की है आपने । आभार
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