
रामगोपाल वर्मा अजीब सी फिल्में बनाते नहीं थकते जबकि हम तो उनकी फिल्में देख कर कुछ ही देर में पक कर निद्रा देवी की गोद में चले जाते हैं। उनकी फिल्म “फूंक” देख कर तो वाकई उनकी दिमागी हालत पर दया आ गयी। अगली फिल्म “अज्ञात” देख कर मेरा मन करा कि मैं उन फायनेन्सरों के प्रति भी सहानुभूति रखूं जो कि इनके कहने पर पैसा लगा देते होंगे। अब बात है इनकी फिल्म “रण” की जिसके बारे में इनका कहना है कि इन्होंने मीडिया पर भड़ास नहीं निकाली है तो बस इतना ही कहना है कि बाबू अगर तुमने मीडिया पर भड़ास निकाल दी तो मीडिया तुम्हारा क्या करेगा ये तुम जानते हो। इसलिये ये काम तो तुम करो ही मत तुम बस पत्रकारों, समीक्षकों को दारू-मुर्गा देते रहो ताकि तुम्हारी बकवास को भी जनता के सामने अच्छा कहा जाए। जिससे लोग एक बार तो गलती से देखने चले ही जाएं। ये काम तो तुम हम भड़ासियों पर छोड़ दो ताकि हम मीडिया पर भड़ास निकाल सकें( यशवंत सिंह के भड़ास फ़ॉर मीडिया की तरह नहीं जो भड़ास के नाम को मीडिया में बैठे धूर्तों को तेल लगाने के लिये कर रहा है) सचमुच भड़ास एट मीडिया यानि मीडिया पर भड़ास........। समझे रामू बाबू ????
जय जय भड़ास
nice
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