ट्रेन से बाहर निकला तो मनमाड़ से औरंगाबाद के लिए पहले टिकट लेना था सो प्रवेश द्वार की तरफ़ बढ़ा, धीरे धीरे कदम बढाते हुए टिकट काउंटर की और बढ़ चला।
टिकिट काउंटर पर एक अधेड़ सी महिला थी, और मेरे आगे एक लम्बी सी लाइन जिसमें मैं सबसे पीछे खड़ा था और देख रहा था टिकिट देने वाली उस महिला कर्मचारी का लोगों के साथ वर्ताव और व्यवहार।
अमूमन जब द्वितीय श्रेणी के लिए टिकिट की लाइन होती है तो भाडा कम होने के करण छुट्टे के लिए परेशानी होती है, और इस परेशानी का शिकार कर्मचारी के साथ यात्री भी होते हैं। जब सफर का समय रात के १२ बजे से ज्यादा हो जाए तो खुदरा पैसे के लिए
मगर टिकिट देने वाली महिला तो किसी आतंकी सरीखे व्यवहार कर रही थी और टिकिट लेने वाले को क्षुद्र नजरिये से देखते हुए खूब झाड़ लगा रही थी। थका हुआ था बहस के मूड में नही था और शुक्र की छुट्टे पैसे साथ में थे सो टिकिट ले प्लेटफोर्म पर आ गया। ट्रेन के आने की उद्घोषणा हो रही थी।
सो मैं भी ट्रेन के इन्तजार मैं इधर उधर
सो मैं भी ट्रेन के इन्तजार मैं इधर उधर
टहलने लगा कुछ देर के बाद क्रमश: ट्रेन के विलंब होने की सूचना आगे बढती चली गई, और मन का कोफ्त बढ़ता चला गया।
अचानक सूचना प्रसारित की गयी की मेरी ट्रेन जो की ४ नंबर प्लेटफोर्म पर आने वाली थी ६ नंबर प्लेटफोर्म पर आ चुकी है। ट्रेन के इन्तजार में उनींदी हो रहे यात्री अचानक से हड़बडाये और ट्रेन को पकड़ने की जल्दी में लुढ़कते पड़कते धक्कामुक्की के साथ अपने ट्रेन में जा पहुंचे। इस प्रक्रिया में कितने गिरे कितनो को चोट आई और कितनो ने अपना समान गंवाया का कोई हिसाब नही।
नयी रेल मंत्री के आने के बाद मेरी कई यात्राओं में से एक यह यात्रा थी और भारतीय रेल के व्यवस्था में निरंतर गिराव का गवाह में जरूर बनना चाहुगा। जहाँ ट्रेन में सुविधा सुरक्षा और
भोजन का क्रमशः गिराव हुआ है वहीँ स्टेशन की इस कुव्य्वास्थ ने भी रेल मंत्री के प्रशासनिक क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगाया।
जरुरी नही की मीडिया में आती ख़बर से ही हम किसी के बारे में एक राय बना लें अपितु अपने अनुभव और संस्मरण ही हमारे लिए काफी होते हैं जो मीडिया की दरबारी ख़बर को देख कर अन्यास ही दोनों के लिए वितृष्णा के भाव ले आते हैं कि क्या ये ही लोकतंत्र के सिपाही और आवाज हैं।
जय हो
रजनीश जी अच्छी जानकारी है हमे ऐसी बातों पर जरूर आवाज़ उठानी चाहिये। हमारी चुप ही इन अव्यवस्थायों का कारण है । शुभकामनायें धन्यवाद्
ReplyDeleteरेलवे का स्टार गिरे तो गिरे ... यात्री को असुविधा हो तो हो ... हमारे आकाओं को क्या फर्क पड़ता है | जैसे तैसे वोट का जुगाड़ कर जीत तो वे जायेंगे ही ....
ReplyDeleteअपने स्टार पे विरोध जारी रहना चाहिए ... धन्यवाद की आपने इसपे एक पोस्ट लिखी
रजनीश जी। इस अव्यवस्था के आलम में हम सच-मुच अग्रणी है और ट्रेन में यात्रा करनें के लिये तो हमें ठीक से ट्रेन होना होगा और सच पूछिये तो हम लोगों पर किसी को ममता भी नहीं आती...आभार्
ReplyDeleterajneesh ji
ReplyDeleteaawaaz jaroor uthani chahiye........ho sakta hai kuch log aage aayein aur karwan banta jaye.
vaise aaj ye avyavashtha sirf ek jagah hi nhi hai sab jagah hai.
rajneesh ji ....
ReplyDeletegher se baher nikalte hi charo taraf is terah ki avyavastha se gujerna perta hai.......ticket khirki ke peeche baite saksh ko is baat ka bhi ahesaas kerna zaroori hai jis kursi per vo baitha hai vo bahut bari zimmedari hai..........
deepawali per mein bete ko lene station gai...platform ticket lena tha.....bahut lambi line thi kafi shore ho raha tha logo ki train choot rahi thi ...ander wahi aaram se ticket dene ka nazara........
usi waqt ek larke ne mujhse kaha 2 tic meri bhi le lijiye meri train choot jayegi.....meien apni change dekhi aur 2 apni 2 uski aur ek ticket extra le li....
jaldi se baher nikli 2 apne liye rakhi,2 us larke ko di .....aur line ki aur mukhatib hoker boli 1 tic hai kisi ko chahiye.....log samajh paate ek bujurg jo kaafi peeche line mein the...jaldi se unko pakraya vo paise dete tab tak mein baher nikal gai................
ek gyan mila ki hum 2 Rs bheekh magane wale ko Kitni jaldi de dete hai lakin is terah se kisi ki madad kyo nahi kerte.......?
yaha baat 2 rs ki nahi hai ...baat ye hai vo 2 Rs kisi ko bahut sukoon de sakte hai ...bus aapki soch ho