अभिलाषा के आँचल में ,
भंडार तृप्ति का भर दो।मन-
मीन नीर क ताल में,
पंकिल न हो यह वर दो॥रतिधरा छितिज वर मिलना ,
आवश्यक सा लगता है।या प्रलय प्रकम्पित संसृति,
स्वर सुना सुना लगता है ।ज्वाला का शीतल होना,
है व्यर्थ आस चिंतन की।शीतलता ज्वालमयी हो,
कटु आशा परिवर्तन की॥डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "
राही"
सुन्दर है, मेरे जैसे ऊबड़-खाबड़ आदमी तक को इसमें रस आया.... साधु साधु
ReplyDeleteजय जय भड़ास