आज कल आई आई एम् सी के नाम पर विवादों का पिटारा खोला जा रहा है, व्यवसायिकता ब्लॉग और वेब पर हावी होती जा रही है टी आर पी की तरह अपने वेप के पन्ने को हिट कराने के लिए नए नए शिगूफे जो निशंदेह हमारे समाज के लिए नुकसानदेह है।
माधवी श्री पत्रकारिता से जुड़ी हुई हैं और महिला पत्रकार संगठन से भी संग ही विभिन्न ब्लोगों के माध्यम से भी अपनी राय रखती रहती हैं। बकबक, आई ऍम एन इंडियन, वूमन ओनली वूमन, के अलावे और भी कई ब्लोगों पर लिखती हैं।
अपनी बेबाकी के लिए मशहूर माधवी ने कुछ लोगों के द्वारा फैलाये जा रहे तथाकथित आई आई एम् सी के अफवाहों और छात्रों की शिकायतों पर अपनी बेबाक राय रखी है। उन्ही के शब्दों में.......
आई आई एम् सी में जो अभी विवाद चल रहा है उसे देखकर दो -तीन चीजे मूलरूप से सामने आ रही है -१) बच्चो (छात्रों- छात्राए ) में यह गुस्सा है कि जिनेह उचित मौका मिलना चाहिए था उनेह नहीं मिला ,दूसरा उनके शिकायत और पीडा बहुत गहरी है। जनतंत्र में बहुत जरूरी है कि हम इस तरह से व्यहवार करे कि दूसरो को अघात न लगे . यह हो सकता है कि एक शि्क्षक को अपने छात्र की क्षमता का अंदाजा हो बेहतर, पर शि्क्षक भी तो इन्सान है .इसलिए उसे बहुत पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए. आई आई एम् सी में प्राय सभी छात्र बुद्धिमान होते है ,इसलिए उनेह बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता आसानी से . उनको पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए परीक्षा में बैठने के लिए.अगर वो पास होते है तो ठीक है वरना कम से कम टीचर दोषारोपण से तो बच जाये गा .
ओर अगर टीचर को लगता है कि छात्रों में कुछ कमी है तो उनेह प्यार से समझाए या अपना पक्ष रखे । या उनकी तमाम कमजोर बिन्दुओ से उनेह अवगत कराये ताकि वे उन पर काम कर के उसे सुधार सके. इतने बड़े संसथान में छात्रों की इम्प्रूवमेंट की गुन्जाईस तो होनी ही चाहिए.
एक बात और बच्चे भाषण नहीं उदाहरण या आप का आचरण देख कर जल्दी सीखते है । यह माता- पिता या शिक्षक तीनो के सन्दर्भ में सही है.
बदलते समय के साथ हमे उनको (बच्चो) भी समझना होगा और उनकी बदलती भाषा को भी ........
चूकि मामले कि पूरी जानकारी नहीं है इसलिए किसी पर दोषारोपण नहीं कर रही हू । बस अपनी बात रखने कि कोशिश है कि हम बडो का दायित्वा बहुत बड़ा है आने वाली पीढी के लिए ...हमे खुद को अपनी अग्रज पीढी को कोस्ते हुए समय नहीं गवाना है ....
main aapki baat se sehmat hu madhwi
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