जैनों का राक्षस तंत्र बनाम लोकतंत्र : जैन साधुओं की इस अपील को देखें

मुंबई के एक प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार में छपी है ये राक्षसी अपील
राजा को राष्ट्रहित एवं जनहित का राजधर्म बताने का कार्य धर्मसत्ता का रहता है। धर्मसत्ता का कर्तव्य है कि वह राजसत्ता को अधर्मी व निरंकुश न होने दे। हमारे देश में राजतंत्र के रूप में लोकतंत्र को सर्वसम्मति से अपनाया गया है। हमारे देश को जिस संविधान के आधार पर संचालित करा जाता है वह "सेक्युलर" कहा जाता है जिसका अर्थ होता है "पंथनिरपेक्ष" न कि धर्मनिरपेक्ष। इस शब्द को संविधान में संशोधन करके बाद में जोड़ा गया और इसकी आड़ में तमाम खुराफ़ातें करी गयी हैं। यह एक अलग विचारणीय विषय है जो कि अत्यंत विशद है अतः इसपर बाद में चर्चा करेंगे लेकिन इसे संदर्भवश यहां लेना पड़ा।
जैन साधुओं ने अपील करी है कि राजनैतिक चुनावों में जैन एक दूसरे के विरुद्ध न खड़े हों। अब जरा विचार करें कि यदि जामा मस्जिद से शाही इमाम साहब भी इसी तरह की अपील करें कि कोई मुसलमान चुनाव में एक दूसरे के विरोध में न खड़ा हो। शंकराचार्य भी मिल कर हिंदुओं से यही अपील करें तो जरा विचार करिये कि लोकतंत्र की क्या हालत होगी । इस शैतानी राक्षसी हरकत के बारे में गहराई से सोचिये कि ये नंगे साधुओं के रूप में राक्षस(दैत्यगुरू शुक्राचार्य की परंपरा) हमारे देश में हैं क्या ये हिंदू, मुसलमानों, बौद्धों, पारसियों, ईसाइयों आदि को लोकतंत्र में आग लगाने के लिये एक वैचारिक पलीता नहीं थमा रहे हैं? ये इस तरह के विचार का बीज समाज की धर्मसत्ता में बोकर धीरे से किनारे हो जाएंगे और जब सत्यानाश होने लगेगा तब हितैशी बन कर सामने आ जाएंगे।
अनूप मंडल के सारे सदस्य आप सभी सम्मानित भड़ासियों से अपील करते हैं कि इन राक्षसों के बहकावे में न आएं। ये इस काम को प्रारंभ से ही करते आए हैं , हर दंगे की जड़ में यह ही रहते हैं कहीं न कहीं छिपे हुए कोई ये तथ्य माने या न माने।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

3 comments:

  1. पहली बार आपसे सहमति जता रहा हूं क्योंकि ये बात सचमुच बेहद खतरनाक होगी यदि धर्म को इस तरह से इस्तेमाल करा जाए। ये विचार भयानक है लोकतंत्र के लिये....। ऐसे लोगों को मैं निजी तौर पर साधु तो हरगिज नहीं मान सकता। इन साधुओं के इस विचार के पीछे मंतव्य क्या है और ये राष्ट्र का कौन सा हित कर रहे हैं ये तो ये लोग ही जानें :(
    जय जय भड़ास

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  2. बंधुवर बिलकुल सही लिखा है | अगर इन की सोअच लागू कर दी जाय तो एक भी जैन चुनाव जीत नहीं पायेगा अगर यही सोच हरेक धर्म लागू करले तो | वैसे शांति और अहिंसा जैनों का मूल आधार है मगर आप देखे जैनों के दोनों धडे वर्चस्व की लड़ाई मैं आपस मैं लड़ मरते हैं |
    प्रणव सक्सेना अमित्रघात

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