चिपचिपे चिपलूणकर का लिबलिबा राष्ट्रवाद और राष्ट्रध्वज

किसी भी देश को राष्ट्र बनाने के लिये जिस गहरे विमर्श की आवश्यकता होती है अगर वह ठोस न होकर चिपचिपा व लिबलिबा हो तो महाराष्ट्रवाद साफ़ तौर पर राष्ट्रवाद से अधिक महत्त्वपूर्ण नजर आता है। हिंदी ब्लागिंग के वैश्विक मंच पर संकीर्ण मानसिकताएं आकर अपनी-अपनी सोच की पिपिहरी फूंक रही हैं। इस पिपिहरी में से कभी "अल्ला हो अकबर" का सुर निकलता है और कभी "जय श्री राम" का सुर लेकिन किसी के फेफड़ों मे वह श्वास नहीं है कि लोकतंत्र का सुर फूंक सके। दाढ़ी वाले, चोटी वाले, टोपी वाले, तिलक धारी लोग लोकतंत्र का सुर सुनते ही कोमा में चले जाते हैं यह सुर इनके लिये सुपरसोनिक फ्रीक्वेंसी का होता है, पगला जाते हैं ऊटपटांग हरकतें करते हुए बेहोश हो जाते हैं। ऐसे में अगर मुंह से "मु" निकाला तो भगवा दीवार के छेद में से झांकते लोग ’सलमान’ को संग में खड़ा देख कर ’मु’सलमान... मु’सलमान... चिल्लाने लगते हैं। आरोप लगाने लगते हैं मिर्गी जैसी हालत में कि भड़ास मुसलमानों का पुष्टिकरण-तुष्टिकरण-दुष्टिकरण कर रहा है। भड़ास के संचालकों की रचनात्मकता का वैचारिक "खतना" हो गया है ये आरोप तो पट्ट से मुंह उठा कर लगा दिया जाता है। गणेश उत्सव के संचालकों को कोई सामाजिक संदेश देना था तो अब और तो कोई सामाजिक समस्या है नहीं तो लगा दिया शिवाजी द्वारा अफ़जल खान के वध करे जाने का चित्र। इस चित्र का संदेश क्या रहा होगा मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से अनुमान लगाता हूं कि सारे शिवाजियों उठो..... बघनखे पहनो और मार डालो सारे अफ़जलों को बल या छल से किसी भी प्रकार। इन लोगों को मुसलमानों से शिकायत है लेकिन ये बंदूक को मुगल आक्रान्ताओं के कंधे पर रखते हैं जो कि भारतीय लोकतंत्र में नहीं बल्कि एक बर्बर सोच में पैदा हुए थे। मैं अच्छी तरह समझता हूं कि "सेक्युलरिज़्म" के नाम पर इस देश की सरकारों ने जो ज़हरीला खेल खेला है वह बेहद खतरनाक है। समस्या हमारे देश की है तो उसे हमें ही सुलझाना होगा, हाथ में दर्द है तो हाथ नहीं काट देते जाति धर्म भाषा आदि के दर्द वैसे ही हैं इससे अधिक कुछ नहीं। इतिहास से मुगल आक्रान्ताओं को लेकर वर्तमान में लाओ और मुसलमानों के प्रति नफ़रत फैलाओ ताकि (कु)राजनीति के मुद्दे का तवा गर्म बना रहे। ये जानते हैं कि अगर आज के उन मुसलमानों के लिए कुछ कहें जो कि राष्ट्रपति रह चुके हैं या केन्द्रीय मंत्री हैं तो पिछवाड़े बिना किसी विलंब के डंडा घुसा दिया जाएगा सो बेहतर है कि इतिहास में ही रेंगते रहें।
मिरज के दंगों के पीछे छेड़खानी की घटना थी या कुछ अलग ये तो वो जानता होगा जिसने इतनी शान्ति से पूरी घटना का वीडियो बनाया है। इन जैसे लोगों को झंडे के पीछे की मानसिकता देखने की "एक्स रे" नजर की अतिमानवीय क्षमता प्राप्त है लेकिन ईसाई पादरी को जिन्दा जला डालने वाले लोगों के भगवा झंडे की एक्स रे रिपोर्ट ये पचा लेते हैं और पिछवाड़े से फूंक तक नहीं निकालते। मैंने बताया कि ध्वज पाकिस्तान का नहीं है उसमें एक सफ़ेद पट्टा पहले है तो चिपचिपा आदमी मुझे कहता है कि झंडे से नीचे उतर आऊं। इन अधम लोगों को तो हमारे राष्ट्रध्वज तिरंगे में भी हरा रंग पसंद नहीं है और शान्ति का प्रतीक सफ़ेद पट्टा इन्हें दिखता नहीं है। लोकतंत्र के दीमक चाहते हैं कि तिरंगा बस भगवा रंग में रंगा रहे और कुछ दुष्ट धूर्त ऐसा भी चाहते हैं कि तिरंगा पूरा हरा हो जाए तो इन दोनो का कुत्सित सपना कभी पूरा न होने देंगे हम। वर्णान्धता के ये मरीज ऐसे हैं कि इन्हें तो कांग्रेस और तिरंगे मे कुछ खास अंतर दिखता ही नहीं। हमारे लिये भड़ास जीवन का दर्शन है जिसे हम जीते हैं मात्र इंटरनेट के आभासी संसार में बकैती करते घूमना नहीं। यदि सचमुच देश की समस्याओं के प्रति गम्भीर हो तो आगे आओ और विमर्श में उतरो ताकि सही हल तलाशे जा सकें वरना हमारे देश की समस्याएं भी अमरीका सुलझाएगा जैसे पाकिस्तान और अन्य देशों की सुलझा रहा है।
इस चर्चा की पिछली कड़ियां देखिये तब मामला समझ में आएगा।
ये कर्मणा जैन है ऐसा अनूप मंडल के लोग मानते हैं
लोकसंघर्ष ने कहा
यहां से शुरू हुई चिपचिपाहट


जय जय भड़ास

6 comments:

  1. एक तो रूपेश तू सुरेश जी का नाम अपनी पोस्ट की टीआरपी बढ़वाने के लिए ले रहा है. तू कम से कम कोई राष्ट्रवादी सोच का तो नहीं हो सकता है या छद्म नाम से लिख रहा है. मुसलमानों ने जो गणेश मूर्ती तोडी वो तुझे नहीं दिखी? इतिहास में जो औरंगजेबों ने जो कत्ले आम मासूम हिन्दुओं का किया था, वो "तुम" लोगो को थोडी महसूस होगा. कश्मीर से हिन्दुओं को भगा कर देश को तोड़ने की साजिश तुझे क्यों दिखाई देगी? अरे काहेका भड़ास? तुम लोगों के पास चिन्तन और सोच की कमी है खुद तो कुछ लिख नहीं पाते और सुरेश जी जैसों को गाली दे कर खुद की दुकानदारी चमकाने पर लगे हुए हो.कोई यदि दूसरों के मॉल पर जीने लग जाये तो उसे क्या कहते है तुम अच्छी तरह जानते हो.कुछ मौलिक लेख लिखते बजाय सुरेश जी को गाली देने के. सुरेश जी के लेखन के स्तर का एक प्रतिशत भी छु लो उस दिन बात करना. हाँ आने वाले पचास सालों में एक और पाकिस्तान और देश में भयानक दंगों के लिए तैयार रहना......

    ReplyDelete
  2. एक तो रूपेश तू सुरेश जी का नाम अपनी पोस्ट की टीआरपी बढ़वाने के लिए ले रहा है. तू कम से कम कोई राष्ट्रवादी सोच का तो नहीं हो सकता है या छद्म नाम से लिख रहा है. मुसलमानों ने जो गणेश मूर्ती तोडी वो तुझे नहीं दिखी? इतिहास में जो औरंगजेबों ने जो कत्ले आम मासूम हिन्दुओं का किया था, वो "तुम" लोगो को थोडी महसूस होगा. कश्मीर से हिन्दुओं को भगा कर देश को तोड़ने की साजिश तुझे क्यों दिखाई देगी? अरे काहेका भड़ास? तुम लोगों के पास चिन्तन और सोच की कमी है खुद तो कुछ लिख नहीं पाते और सुरेश जी जैसों को गाली दे कर खुद की दुकानदारी चमकाने पर लगे हुए हो.कोई यदि दूसरों के मॉल पर जीने लग जाये तो उसे क्या कहते है तुम अच्छी तरह जानते हो.कुछ मौलिक लेख लिखते बजाय सुरेश जी को गाली देने के. सुरेश जी के लेखन के स्तर का एक प्रतिशत भी छु लो उस दिन बात करना. हाँ आने वाले पचास सालों में एक और पाकिस्तान और देश में भयानक दंगों के लिए तैयार रहना......

    ReplyDelete
  3. शिवाजी से जुड़े मुद्दे महाराष्ट्र में हमेशा से बहुत संवेदनशील रहे हैं. महाराष्ट्र सरकार ने हजारों करोड़ रूपये खर्च कर अरब सागर में शिवाजी की मूर्ति लगाने का निश्चय किया है. यह मूर्ति अमरीका की स्टेच्यू आफ लिबर्टी की तर्ज पर होगी.

    लेकिन जब शिवाजी को इस तरह महान साबित किया जा रहा हो तो यहां यह भी समझने की जरुरत है कि शिवाजी, जनता में इसलिए लोकप्रिय नहीं थे क्योंकि वे मुस्लिम-विरोधी थे या वे ब्राह्मणों या गायों की पूजा करते थे. वे जनता के प्रिय इसलिए थे क्योंकि उन्होंने किसानों पर लगान और अन्य करों का भार कम किया था.

    शिवाजी के प्रशासनिक तंत्र का चेहरा मानवीय था और वह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता था. सैनिक और प्रशासनिक पदों पर भर्ती में शिवाजी धर्म को कोई महत्व नहीं देते थे. उनकी सेना के एक तिहाई सैनिक मुसलमान थे. उनकी जलसेना का प्रमुख सिद्दी संबल नाम का मुसलमान था और उसमें बड़ी संख्या में मुस्लिम सिद्दी थे.

    दिलचस्प बात यह है कि शिवाजी की सेना से भिड़ने वाली औरंगजेब की सेना का नेतृत्व मिर्जा राजा जयसिंह के हाथ में था, जो कि राजपूत था. जब शिवाजी आगरा के किले में नजरबंद थे तब कैद से निकल भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी, उनमें से एक मुसलमान था जिसका नाम मदारी मेहतर था.उनके गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे और उनके तोपखाने की कमान इब्राहिम गर्दी के हाथ में थी. उनके व्यक्तिगत अंगरक्षक का नाम रूस्तम-ए-जामां था.

    शिवाजी को न तो मुसलमानों से घृणा थी और न ही इस्लाम से. उनका एकमात्र उद्देश्य बड़े से बड़े क्षेत्र पर अपना राज कायम करना था. उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी बताना पूरी तरह गलत है.


    शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे. उन्होंने हजरत बाबा याकूत थोरवाले को जीवन पर्यन्त पेंशन दिए जाने का आदेश दिया था. उन्होंने फादर अंब्रोज की उस समय मदद की जब गुजरात में स्थित उनके चर्च पर आक्रमण हुआ. अपनी राजधानी रायगढ़ में अपने महल के ठीक सामने शिवाजी ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था जिससे उनके अमले के मुस्लिम सदस्य सहूलियत से नमाज अदा कर सकें. ठीक इसी तरह, उन्होंने महल के दूसरी ओर स्वयं की नियमित उपासना के लिए जगदीश्वर मंदिर बनवाया था.

    अपने सैनिक अभियानों के दौरान शिवाजी का सैनिक कमांडरों को यह स्पष्ट निर्देश रहता था कि मुसलमान महिलाओं और बच्चों के साथ कोई दुर्व्यवहार न किया जाए. मस्जिदों और दरगाहों को सुरक्षा दी जाए और यदि कुरान की प्रति किसी सैनिक को मिल जाए तो उसे सम्मान के साथ किसी मुसलमान को सौंप दिया जाए.

    एक विजित राज्य के मुस्लिम राजा की बहू को जब उनके सैनिक लूट के सामान के साथ ले आए तो शिवाजी ने उस महिला से माफी मांगी और अपने सैनिकों की सुरक्षा में उसे उसके महल तक वापस पहुंचवाया.

    शिवाजी को न तो मुसलमानों से घृणा थी और न ही इस्लाम से. उनका एकमात्र उद्देश्य बड़े से बड़े क्षेत्र पर अपना राज कायम करना था. उन्हें मुस्लिम विरोधी या इस्लाम विरोधी बताना पूरी तरह गलत है. न ही अफजल खान हिन्दू विरोधी था. जब शिवाजी ने अफजल खान को मारा तब अफजल खान के सचिव कृष्णाजी भास्केर कुलकर्णी ने शिवाजी पर तलवार से आक्रमण किया था.

    आज साम्प्रदायिक ताकतें शिवाजी से जुड़े मुद्दों का साम्प्रदायिकरण कर उनका अपने राजनैतिक हित साधन के लिए उपयोग कर रही हैं. साम्प्रदायिक चश्मे से इतिहास को देखना-दिखाना साम्प्रदायिक ताकतों की पुरानी आदत है. इस समय महाराष्ट्र में हम जो देख रहे हैं, वह इतिहास का साम्प्रदायिकरण कर उसका इस्तेमाल समाज को बांटने के लिए करने का उदाहरण है. समय का तकाजा है कि हम संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठें और राष्ट्र निर्माण के काम में संलग्न हों. हमें राजाओं, बादशाहों और नवाबों को किसी धर्म विशेष के प्रतिनिधि के तौर पर देखने के बजाए ऐसे शासकों की तरह देखना चाहिए जिनका एकमात्र उद्देश्य सत्ता पाना और उसे कायम रखना था.ravivar.com say

    ReplyDelete
  4. अबे बेरोजगार लेंड़ीराम!!! तूने और तेरे सुरेश चिपलूणकर ने अब तक क्या करा है? जब कश्मीर से हिंदुओं के पिछवाड़े लात मार कर भगाया जा रहा था तो तू क्या माताजी का दूध पी रहा था या निक्कर पहन कर सुरेश चिपलूणकर के लेखन को सराह रहा था? मैं कहता हूं कि अगर सुरेश चिपलूणकर हमारे डा.साहब का सहस्त्रांश भी जीवन में आचरण कर ले तो उसका जीवन सुधर जाएगा और लगे हाथ तेरा भी.....
    जय जय भड़ास

    ReplyDelete
  5. एक ही प्राणी जो सुरेश चिपलूणकर को अपना आदर्श मानता है बेचारा पगला कर कभी नौकरी छोड़ कर बेरोजगार हो जाता है और कभी माता-पिता का दिया नाम बताने में शर्मिन्दा होता है तो बेनाम हो जाता है।
    जय जय भड़ास

    ReplyDelete
  6. yeh berojgar, chiplunkar ki taraf nahin he...uski shivaji aur afzal khan post dekho us par jo naye virus ka comment he, yeh woh utha ke laya he. ..
    lekin yeh us akhbar ka naam chhod aaya jiska yeh matter he.

    virus kaun he padho is post ko:
    http://mahashaktigroup.bharatuday.in/2009/09/blog-post_1446.html

    benami se is liye kar raha hoon ki mujhe naam ki zaroorat nahin sab janen he,,,sabse achha to chiplunkar jane he.

    ReplyDelete