सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
कुछ देर लिखता हूँ फिर रुक जाता हूँ
सोचता की इस ईद पर क्या करूँ,
ख़ुशी भी अजीब सी लगती है ईद की
लाशों ढेरों से लिपटा मेरा देश है,
आँखों से अश्क नहीं टपकता लहू है
हर किसी के हाथ में कफ़न है दोस्तों,
अजीब सा मंज़र है हर किसी दिल का
हर किसी के चेहरे पे एक खौफ सा है,
सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
आपका हमवतन भाई ,,गुफरान (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद),
भाई बेरोजगारी है तो खर्च करने के बारे में मत सोचिये। ईदी और जकात की जुगाड़ में रहिये ताकि ईद अच्छी मन सके :)
ReplyDeleteजय जय भड़ास
hahaha shuqria bhaijan.
ReplyDeleteगुफ़रान भाई आपको ईद की हार्दिक शुभकामनाएं। आपकी नज़्म को मेरे उर्दू ब्लाग "लंतरानी" पर नस्तालिक रस्मुलख़त में करके उर्दू जानने वालों के लिये लिख रही हूं।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
जी नवाजिश है मुनव्वर आपा काफी दिनों बाद आपका कमेन्ट देखा अच्छा लगा और उम्मीद है वहां सभी खैरि़त से होंगे ईद की बहोत मुबारकबाद आप सभी को,
ReplyDeleteed mubarak ho.
ReplyDeleteed mubarak ho.
ReplyDeleteed mubarak ho.
ReplyDeleteshuqriya ke saath aap sabhi ko saparivar dashahra ki shubhkamnayen
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