कुछ लोगों को टीवी कार्यक्रम से संस्कृति का हनन होता दीखता है तो कुछ को पाश्चात्य सभ्यता नज़र आता है इसके पीछे । शायद हमही वो देश या फ़िर समाज रहें हैं जिसने हर काल मैं परिवर्तन का झंडा बुलंद किया है परन्तु फ़िर भी अनेक स्वर सुनने को मिलते हैं की " हमारा सांस्कृतिक मूल्य घट रहा है"।
कुछ बड़े ही आश्चर्यजनक कारण बताये जाते हैं हमारे घटते मूल्यों के पीछे, जैसे कि
- प्रेमी युगल सबके सामने वैलेंटाइन डे मानते हैं....
- टीवी पर परिवार के सामने सच बोला जा रहा है....
- लोग कपड़े छोटे पहनते हैं....(विशेषकर लड़कियां)
- शादी से पहले खुले मैं सम्बन्ध (विशेषकर स्त्रियों के)
- धर्म कर्म से घटता स्नेह....इत्यादि इत्यादि......
- हर देवता एक से अधिक पत्नियों के पति रहे हैं , राधा और कृष्ण की पूजा होती क्योँ है वो तोह सिर्फ़ एक प्रेमी युगल थे (रुक्मिणी का नाम पता नही किसको मालुम है, परन्तु राधे राधे आधा हिन्दुस्तान करता मिलता है और हाँ उनका मिलना और प्रेमालाप अत्यंत ही सार्वजनिक था)।
- हम महात्मा के देश से हैं और हमारा मूल मंत्र "सत्यमेव जयते" ही है फ़िर अपने पिछली गलतियों को पुरे परिवार या समाज के सामने स्वीकार करने मैं हर्ज़ क्या है)
- तीसरी बात कपडों की , वो कौन सा युग था जहाँ स्त्रियाँ पुरे कपड़े मैं छुपी थी, शायद इतिहास या माइथोलोजी न बता पाए, हमारे समाज मैं गणिकाएँ अपने भड़काऊ कपडों के लिए ही जानी जाती थी और उनका स्थान समाज (शहर) के मध्य मैं ही होता था......
- आधे से अधीक देवता गण का जन्म बिना शादी और सामाजिक मर्यादा के ख़िलाफ़ ही हुआ है, कुछ प्रसिद्द सुंदरियों को तोह महारत हासिल था बिना शादी के सम्बन्ध बनाने मैं (अप्सराएं) , हमारे बजरंगबली , केसरी नंदन हैं, अनजानी पुत्र हैं, पवन पुत्र भी हैं और तथाकथित रुद्रावतार भी हैं......
कुछ सच भी है जिसको स्वीकार कर हमारे generation को उनका due credit भी मिलना चाहिए....
- ये देश अब चंद नही बल्कि १२० करोर लोगों का है, और कमोबेश सभी के पास कुछ न कुछ तो है,
- मेरा मतलब लोगों के पास कम से कम अनेक opportunity तो हैं ही....
- आज हमें तीसरी दुनिया कहने वाले लोग हम से दोस्ती करने को व्याकुल हो रहे हैं....
- आज फिरंग भी हमारे देश मैं नौकरी करने आ रहे हैं......
- हम विदेशी कम्पनियों को खरीद भी रहे हैं और चला भी रहे हैं....
आज हमारे इस जेनरेशन ने पुरी सोच को बदल दिया है, लोग न केवल हमें seriously लेने लगे हैं परन्तु हमारे बिना किसी का काम भी नही चलने वाला......
दुसरे शब्दों मैं, दुनिया के रफ़्तार के साथ न केवल हम आगे बढे हैं परन्तु सब को (बहुत को) पीछे भी छोड़ा है ...अगर ये सब ग़लत नही है.......
तो क्योँ हम नाहक ही हंगामा खड़ा करते हैं , सभ्यता और संस्कृति के नाम पर क्योँ आज की generation की हर चीज़ बुरी मानी जा रही है......
कृपया बदलाव को धैर्य से स्वीकार करें और सत्य को आत्मसात भी करें.........
bahut badiya baat randheer ji.....acha laga ki kuch hi log sahi magar ....badlav aa to raha hai...kyunki in sanskriti,moolyon ke hasiye par to ladkiyan hi rahti hain hamesa....
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