भैंस बहुत गुस्से में है। उसका गुस्सा अपनी जगह ठीक भी है। उसकी नाराजगी गाय को माता का दर्जा प्रदान किए जाने के कारण है। गाय हमारी माता है यह बात प्रत्येक माँ अपने बच्चे को बतलाती है । इसके पीछे संभवतः यही तर्क है कि जिस प्रकार अपनी माँ के दूध को पीकर हर बच्चा हृष्ट पुष्ट तथा बड़ा होता है गाय का दूध भी यही कार्य करता है। जैसा कि सब लोग जानते हैं कि दूध का रंग सफेद होता है तथा उसकी यह विशेषता होती है कि यदि उसमें पानी मिला दिया जाए तो वह भी दूध बन जाता है। कुछ फिल्म वाले भी अपने गीतों में दूध वितरकों को पानी के गुण के बारे में यह सलाह देते रहते हैं कि उसे जिस में मिला दो लगे उस जैसा। दूध बेचने वाले प्रतिदिन यही प्रयोग करते रहते है। गाय के दूध की विशेषता यह भी है कि उससे दही, पनीर, घी, छाछ, रबड़ी इत्यादि अनेक चीजों का निर्माण होता है साथ ही गौमूत्र का भी अनेक रोगों की चिकित्सा में लाभकारी बताया गया है जिसके उपयोग की सलाह सब दूसरों को देते रहते है पर स्वयं उपयोग नहीं करते है। अनेक घरों में आज भी खाना बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए एक रोटी बनाने की परंपरा है जिसे वे लोग अपने घर में बची खुची जूठन तथा फलों और सब्जियों छिलकों के साथ उसे परोस देते है। कुछ लोग एक दो रुपयों का चारा डाल कर अपना परलोक सुधारने में लगे है इसलिए उनको पुण्य का भागीदार बनाने के लिए बहुत सी चारे वालियाँ सड़क के किनारे डेरा जमाए रहतीं हैं यह बात और है कि यदि कोई गाय माता उनके चारे के ढेर में गलती से मुँह मार कर चारे वालियों को भी पुण्य कमाने का अवसर प्रदान कराना चाहे तो उसे स्वयं पाप का भागीदार बनना पड़ता है जिसकी परिणिति दो चार डण्डे खाने के बाद होती है।
शास्त्रों के अनुसार गाय की पूँछ पकड़ कर ही बैतरिणी पार की जाती है तथा बैकुण्ठ प्राप्त होता है किन्तु सड़कों के किनारे पुण्य कमाने की दुकानों के कारण अनेक लोग भी सड़क पर साष्टांग प्रणाम करते हुए बैकुण्ठ पहुँच जाते है। संभवतः गाय को इसीलिए माँ का दर्जा दिया गया है पर भैंस नाराज़ है। उसका कहना है कि उसके दूध से भी वही सब बनता है जो गाय के दूध से बनता है फिर क्या बात है कि गाय को तो माँ का सम्मान प्राप्त है और उसे कुछ भी नहीं ।
भैंस इस बात पर भी गुस्से का इज़हार करती है कि ‘उसके नाम का उपयोग हिन्दी के साहित्यकारों ने कहावतों तथा मुहावरों में करके उसे बदनाम करने की साजिश रची गई है जैसे ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ में उसे ऐसा माना गया है जैसे वह बहरी हो तथा संगीत से नफ़रत करती हो यदि बीन ही बजानी हो तो साँप के आगे बजाओ भैंस के आगे बजाने की क्या आवश्यकता है। ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ में उसे अनपढ़ तथा मूर्ख समझा गया है। इसी तरह ‘अक्ल बड़ी या भैंस’ में अक्ल को सब उससे बड़ा समझते है । जरा सोचिए कि अक्ल भैंस से बड़ी कैसे हो सकती हे। क्या अक्ल के अन्दर भैंस समा सकती है परन्तु भैंस के अन्दर थोड़ी बहुत तो अक्ल होती ही हे। इसी तरह ‘गई भैंस पानी में’ यदि पानी में चली गई तो क्या जुल्म हो गया और तो और स्कूलों में निबंध भी गाय पर लिखने के लिए दिए जाते है भैंस पर कोई लिखने के लिए नहीं कहता।
एक फिल्मी गीत में उस के पक्ष में एक बात अवश्य फिल्म के हीरो ने उठाई है कि उसकी भैंस को डण्डा क्यूँ मारा जबकि उसका कुसूर सिर्फ इतना ही था कि वह खेत में चारा चर रही थी किसी के बाप का कुछ नहीं कर रही थी। उसके प्रति रंगभेद नीति अपनाना भी सरासर गलत है। जगह जगह गौ रक्षा समितियों का गठन तो हुआ है परन्तु भैंस रक्षा समितियाँ कहीं भी किसी ने भी नहीं बनाईं।
उसे इस बात पर भी एतराज़ है कि देवताओं ने भी उसके साथ पक्षपात किया है। अधिकांश देवताओं ने दूसरे जानवरों को अपना वाहन बनाया है जिनमें गाय, बैल, गरूण, तथा मोर और यहाँ तक कि चूहा और उल्लू तक शामिल हैं किन्तु भैंस के वंशजों को यमराज को सौंप दिया है। यदि उसे माँ के समान न समझा जाए तो कम से कम यह तो कहा जाए कि गाय हमारी माता है और भैंस हमारी मौसी है।
अपनी इस मौसी को तुम ही लोग देवनार के कत्लखाने में रो ही हजारों की संख्या में कटवा देते हो और दिखावा करते हो कि इन कत्लखानों में जैनों की भागीदारी नहीं है, रुद्रारम वाले कत्लखाने की फोटू के साथ सवाल भड़ास पर अब तक है उसका उत्तर देने का मुंह नहीं है और व्यंग लिख रहा है मासूम प्राणी के ऊपर। दुष्ट राक्षस! तुझे बता दूं कि भैंस का नर यानि भैंसा(जो कि तेरे मौसा जी हुए) यमराज का वाहन है और अब वे तुम राक्षसों को यमलोक ले जाने आने ही वाले हैं। राक्षस महावीर सेमलानी बोला लेकिन विनम्रता की कुटिलता दिखा कर सवाल का उत्तर दिये बिना ही भाग गया। कहता है कि हमें सिर्फ़ मायावी कहते हैं तर्क या तथ्य नहीं देते पापी,कुकर्मी राक्षस को तर्क दिकते नहीं और जो टिप्पणी करने वाले दो-चार लोग हैं उनसे भी इसको जलन होने लगी यानि सब इसकी सहलाएं तो खुश होगा और अपने नंगे साधुओं से आशीर्वाद दिलाएगा।
ReplyDeleteजय जय भड़ास
मैं हर दुधारू पशु के प्रति वैसा ही भाव रखता हूं जो कि मेरी मां के लिए है चाहे वह भैंस हो या ऊंटनी अगर मैंने उस प्राणी से दूध पिया है तो भी और नहीं भी तो भी। अब अनूप मंडल भयंकर होता जा रहा है लेकिन उन्हें मौका दिया जा रहा है वरना अगर सही तर्क और तथ्यों के आधार पर विमर्श करा जाता तो ये नौबत न आती।
ReplyDeleteजय जय भड़ास