बाजीगरी, दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल।

धोखागरी , जालसाजी, ठगी का शिकार क्योँ हो रहे हैं हम? सीधी बात यह है कि इच्छा हम सब में है कि हम ठगें- क्यूँ कहते हैं ऐसा? सोना दुगुनी करने वाला बाजीगर आज हमारा नायक है। किसका नाम लें, वो जो कि शिकंजों के पीछे डाले गए या फ़िर वो जो शिकंजे के बाहर अपनी बाजीगरी दिखाए जा रहे हैं। कब ऐसा लगेगा कि तलवार एक एक कर काटती है और कलम का बाजीगर जब अपनी बाजीगरी पर उतरता है तो देश और दुनिया छोटी पड़ जाती है। क्यूँ नही घृणा होती समाज को ऐसे कलम के बाजीगरों से ? कलम का सिपाही भी तो उसे नायक ही बनता है और हमारी नज़रों को hypnotize करने वाली मीडिया भी उनके मामले में बाजीगरी दिखने से बाज़ नही आती।

जब तक ये समझ में नही आएगा कि सौ का नोट नब्बे रूपये में नही खरीदी जा सकती , बिना टिकट ख़रीदे लौटरी नही जीती जा सकती, बिना मेहनत, शोर्टकट से जुआ भी नही जीता जा सकता तब तक सोना दुगुना करने वाला भेष बदल बदल कर नई तकनीकियों का प्रयोग करता हुआ हमें लूटता रहेगा और इस लुट की संपत्ति को हासिल करने की इच्छा में हम भी लुटते रहेंगे।यही तो ठगी का खेल है जो आज दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में शुमार हो गया है।

जिंदगी सवालों से घिरी है, जवाब कहाँ ढूंढेंगे? सवालों के साथ? सवालों के पहले? सवालों के बाद? तो जनाब जो सवाल के साथ साथ जवाब ढूंढ़ते हैं वो भी कामयाब! जो सवालों को पहले ढूंढ़ चुके हैं वो भी कामयाब और जो बाद में तलाशते हैं वो भी कामयाब हैं परन्तु तीनों तरह के प्राणियों कि कामयाबियां अलग अलग हैं।

पहली तरह का कामयाब व्यक्ति कुछ भी हो सकता है, अपराधी , अपराधियौं का पता लगाने वाली पुलिस या फ़िर कोई भी कर्मकांडी मानव। फंडा यह है कोई भी "समस्या अपना समाधान लेकर ख़ुद आती है "ऐसे लोगों कि सूची आप स्वयं बनायें - हजारों लाखों लोग आपकी जानकारी में होंगे ।

आइये कामयाबी उनमे तलाशें जो सवालों का जवाब पहले से ढूंढ़ कर रखते हैं - ऐसे योजनाविद लोगों की कामयाबी के किस्से पुरी दुनिया में मिल जायेंगे , ज़्यादातर लोग अपने अनुभव के आधार पर अपने पक्ष में प्रश्न भी गढ़ते हैं और उत्तर भी । कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा और मन का न हो तो और भी अच्छा।

तीसरे तरह के लोग कर गुजरते हैं और सवाल खड़े होने के बाद उत्तर तलाशते हैं । दुनिया के अधिकांश हठात कामयाब लोग इसी श्रेणी से आते हैं, बहुत से कार्य इतने कामयाब होंगे ये उन्होंने भी नही सोचा था , धीरे धीरे सवाल आते गए और वे उसका जवाब देते गए।

क्या आप और में इसी तीन तरह के श्रेणी से हैं? अगर नही तो भी चिंता नही । इस देश में "जब जागो तभी सवेरा" का सिद्धांत।
शुरू कीजिये अभी से !!!

Prakash Nath Mishra
Dy.S.P (Vigilance)
Bihar.

4 comments:

  1. चिन्तनपरक विषय है ऐसे तो कभी खुद को देखा ही नहीं प्रेरित करता हुया सुन्दर आलेख वैसे तो खुद की तलाश खुद मे करो तो सभी जवाब सही मिलते हैं बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. प्रतिक्रिया के लिए मित्रों को आभार.

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