कुछ तो मजबूरियां रही होंगी

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूँही नहीं हुए सनम बेवफा,

जी हाँ कल तक एक दुसरे को औकात बताने वाले नेता ऐसा क्या हुवा की दोनों गलबहियां करे घूम रहे हैं, कल्याण सिंह का तो समझ में आया की जिस भारतीय जनता पार्टी में उनकी नंबर दो की औकात थी उनको हाशिये पर दाल दिया गया जिससे खिन्न होकर वो उसकी जड़ काटने में जुट गए जैसा राजनीति में होता रहता है लेकिन ये समझ नहीं आया पिछली बार की तरह इस बार भी मुलायम ने कल्याण को सहारा क्यों दिया इतना बड़ा खतरा क्यों उठाया जबकि उनको पता था की एक बार मुस्लमान उनका साथ दे चुके थे लेकिन गद्दारी कल्याण सिंह ने की और फिर अपने पुराने घर लौट गए थे लेकिन इस बार क्या मुलायम सिंह को नहीं पता था की उनका वोटर उनकी समाजवादी (अमरवादी) सोच से खिन्न है फिर उन्होंने इतना आत्मघाती फैसला क्यों किया और तो और अपने कई दिग्गज लड़ाकों से हाथ धो बैठे इतना ही नहीं जब से अमरसिंह नाम का भूत उनपर चढा है तब से समाजवादी नेता वैसे भी मुलायम से दूरियां बढाते जा रहे हैं और तो और इस सबके चलते अपने सबसे चहेते और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे आज़म खां से भी हाथ धो बैठे, खैर अब मुद्दे पर आते हैं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह ने नब्बे के दशक में राममंदिर आन्दोलनकारियों पर गोली चलवा कर जिस तरह से अपनी पैठ मुस्लिमों में बनायीं उसी तरह भारतीय जनता पार्टी जो की अपनी अंतिम सांसे गिन रही थी को संजीवनी देदी और पुरे भारत में संघियों ने भारतीय जनता पार्टी के माध्यम ऐसा प्रचार किया की जैसे अयोध्या में जो कुछ भी हुवा है वो मुसलमानों ने ही किया है और देश की भोली जनता जस्बातों में बह गयी, मै कहना सिर्फ इतना चाहता हूँ की क्या मुलायम और कल्याण की दोस्ती उस वक़्त नहीं थी ....? जी बिलकुल थी और ये एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था वहां गोली चलवा कर दोनों अपना अपना हित साध रहे थे और फिर दोनों ही सत्ता में बन्दर बाट करते रहे लेकिन खेल बिगडा बहेन जी के आने से और ऐसा चौपट हुवा की दोनों को अपना अंत नज़र आने लगा तो फिर तय यही हुवा की वक़्त आ चूका है की अब पर्दा उठा दिया जाये और खुल कर मिल कर नोच घसोठ की जाये लेकिन जनता ने इस बार ऐसा करारा तमाचा मारा की बोलती बंद हो गयी और रही बात राजनीति की तो उत्तर प्रदेश से अब दलालों की राजनीति ख़त्म होने की कगार पर है।

आपका हमवतन भाई........गुफरान.....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद.

1 comment:

  1. गुफ़रान भाई अगर हम थोड़ा सा ऊपर जाकर देखें तो पाते हैं कि कल्याण और मुलायम क्या.... और क्या सोनिया और लालू... हमाम में सब नंगे हैं बस शासन करना है येन-केन प्रकारेण जनता पर.....
    कितने नेताओं को आज तक कानूनन कड़ी सजा हुई? जबकि दुनिया भर के मुकदमें चलते हैं लेकिन सब बीसियों बरस लंबित रहते हैं और पार्टी कोई भी हो शासन में हो या न हो एक बार जो उस स्तर पर पहुंच गया सुरक्षित हो जाता है हरामजद्दई के लिये.....
    अगर नयी दिशा देना है तो संविधान में रिफ़ार्म्स की सख्त जरूरत है लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे???? जुडीशियरी के बारें में चूं तक करने में बड़े-बड़े तुर्रम खानों की फटती है एक बस हम लोग ही हैं जो भड़ास पर थोड़ा-बहुत चिल्ला पुपुआ लेते हैं
    जय जय भड़ास

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