आज ज़िन्दगी ........ ।

लल्लन जी की कई लेखनी में से एक ये भी है, परिचय मैं पहले ही बता चुका हूँ फ़िर भी बताता चलूँ कि अभियंता होते हुए भी लल्लन जी का साहित्य प्रेम अद्वितीय था, व्यस्तता भरी जिन्दगी के बावजूद समय का सदुपयोग कलम से करने वाले लल्लन जी भले ही आज हमारे बीच नही रहे मगर उनकी लेखनी हमेशा उनके होने का अहसास कराती है।
लल्लन जी ने अनेक नाटक कि रचना की जो आज विश्वविद्यालयों में पढाई जाती है, लल्लन जी के इस रचना को जब उनकी अर्धांगनी श्रीमती कुसुम ठाकुर ने कुछ समय पूर्व अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया तो विभिन्न टिप्पणी ने इसकी विवेचना भी की और सुझाव भी दे डाला मगर इस सब से परे इस सुंदर रचना ने मुझे पुनर्प्रकाशन के लिए मजबूर कर दिया। आपके लिए एक बार फ़िर से ये रचना......

आज ज़िन्दगी का ऐसा एक दिन है,
बदन मेरे पास है सामने मेरा दिल है।
आज ज़िन्दगी ........ ।


मुद्दतों से सोचा था काश ऐसा दिन आये,
वो भी आये सामने साथ मेरा दिल लाये।
आज ज़िन्दगी ......... ।


शुक्रिया करुँ कैसे समझ नहीं आता,
ऐसी कहि गैर का कोई दिल है चुराता।
आज ज़िन्दगी ......... ।


दिल लुटा के मुझ जैसा सज़ा सिर्फ़ पाता,
कत्ल भी करें गर वो माफ़ हो जाता।
आज ज़िन्दगी ........... ।


स्व. लल्लन प्रसाद ठाकुर-

13 comments:

  1. सुन्दर रचना. और आपका सराहनीय प्रयास.साधुवाद

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  2. प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

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  3. sundar abhivyakti..........

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  4. bahut badhiya....bahut achha likha hai aapne

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  5. लल्जन की रचना पसन्द आयी।

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  6. सुंदर कविता
    सुन्दर भाव,
    आभार लल्लन जी की कृति के पुनर्प्रकाशित करने के लिए.

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  7. badi hi lajawaab cheese padhwa di .shukriya.

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  8. badi hi lajawaab cheese padhwa di .shukriya.

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  9. प्रतिक्रिया के लिए सभी साथी का आभार.

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