लल्लन जी ने अनेक नाटक कि रचना की जो आज विश्वविद्यालयों में पढाई जाती है, लल्लन जी के इस रचना को जब उनकी अर्धांगनी श्रीमती कुसुम ठाकुर ने कुछ समय पूर्व अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया तो विभिन्न टिप्पणी ने इसकी विवेचना भी की और सुझाव भी दे डाला मगर इस सब से परे इस सुंदर रचना ने मुझे पुनर्प्रकाशन के लिए मजबूर कर दिया। आपके लिए एक बार फ़िर से ये रचना......
आज ज़िन्दगी का ऐसा एक दिन है,
बदन मेरे पास है सामने मेरा दिल है।
आज ज़िन्दगी ........ ।
बदन मेरे पास है सामने मेरा दिल है।
आज ज़िन्दगी ........ ।
मुद्दतों से सोचा था काश ऐसा दिन आये,
वो भी आये सामने साथ मेरा दिल लाये।
आज ज़िन्दगी ......... ।
शुक्रिया करुँ कैसे समझ नहीं आता,
ऐसी कहि गैर का कोई दिल है चुराता।
आज ज़िन्दगी ......... ।
दिल लुटा के मुझ जैसा सज़ा सिर्फ़ पाता,
कत्ल भी करें गर वो माफ़ हो जाता।
आज ज़िन्दगी ........... ।
स्व. लल्लन प्रसाद ठाकुर-
सुन्दर रचना. और आपका सराहनीय प्रयास.साधुवाद
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteis shaandar prastuti ke liye aabhar
ReplyDeleteसुन्दर रचना.....
ReplyDeletesundar abhivyakti..........
ReplyDeleteBahut khub.
ReplyDeletebahut badhiya....bahut achha likha hai aapne
ReplyDeleteलल्जन की रचना पसन्द आयी।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteआभार
सुंदर कविता
ReplyDeleteसुन्दर भाव,
आभार लल्लन जी की कृति के पुनर्प्रकाशित करने के लिए.
badi hi lajawaab cheese padhwa di .shukriya.
ReplyDeletebadi hi lajawaab cheese padhwa di .shukriya.
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए सभी साथी का आभार.
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