एक बार फ़िर बाबा ने मुंह फाडा और नेताओं के साथ राजनीति को कोसा। अपने आपको योगगुरु और प्राचीन भारत के संरक्षक के रूप में सामने लाने वाले बाबा का ये कोई नया बयान नही है। अक्सर मीडिया के सामने आते ही बाबा के चल ढाल, रंग और वाणी बदल जाती रही है और ये ही इस बहुरूपिये बाबा की पहचान रही है।
जरा बाबा के बयान पर नजर डालें......
लोकतंत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा "यह विडंबना है कि तीन तीन दौर की परीक्षा पास करने वाला अधिकारी झूठे, बेईमान, अंगूठा छाप और मूर्ख नेताओं के निर्देश पर काम कर रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।"
लोकतंत्र की सक्रियता पर " देश के प्रत्येक नागरिक की राजनीति में सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए और उन्हें चुनाव सुधारों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए। जन्म लेने से मौत होने तक प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी में राजनैतिक दखलंदाजी बनी रहती है तो राजनीति में हमारा सक्रिय हस्तक्षेप क्यों नहीं हो सकता। जन्म होता है तो जन्म प्रमाण पत्र, नौकरी होती है तो नौकरी प्रमाण पत्र, आचरण प्रमाण पत्र, शिक्षा का प्रमाण पत्र सहित तमाम प्रकार के प्रमाण पत्र और अंत में मौत का प्रमाण पत्र भी हमारे परिजनों से मांगा जाता है तो हम नेताओं से प्रमाण पत्र क्यों नहीं मांग सकते हैं। बाहर से देखने में ऐसा लगता है कि हम स्वतंत्र हैं लेकिन वास्तव में हम राजनीतिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो पाए हैं। "
बाबा के मुताबिक " देश में तमाम प्रकार के सरकारी करों के अलावा तीन अन्य प्रकार के कर हैं जिसने हम सबको परेशान रखा है। हम लोगों को अन्य करों के अलावा कर वसूल करने वाले को भी कर देना पड़ता है, राजनीतिक कर देना पड़ता है और गुंडा कर देना पड़ता है। इन तीनों करों ने देश और देशवासियों की दुर्दशा कर रखी है। राजनीति से लोगों का भरोसा उठ गया है। इन भ्रष्ट और बेईमान नेताओं के कारण लोकतंत्र में खोट आ गई है। तमाम मुहिम के बाद 45 से 47 फीसदी मतदान होते हैं क्योंकि लोगों की रूचि अब इसमें नहीं रह गई है। झूठे बेईमान अंगूठा छाप और मूर्ख लोग देश चला रहे हैं और पढ़ लिख कर तीन तीन दौर की परीक्षा पास कर बनने वाले प्रशासनिक पदाधिकारी ऐसे नेताओं के नीचे काम कर रहे हैं जिन्हें अपना नाम तक लिखना नहीं आता। यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। कुछ दरिंदे देश को लूट रहे हैं और हम मूक हैं यह हास्यास्पद है। राजनीति के कुछ बेईमान, भ्रष्ट और नेत्रहीन लोगों ने देश और लोकतंत्र का मजाक बना दिया है और शहीदों का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब जागने का वक्त आ गया है। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का समय है।"
अब जरा बाबा पर एक नजर मारें तो..........
१) बाबा के क्रांतिकारी विचार तभी आते हैं जब मीडिया के नुमाईंदे इनके पास होते हैं ( अपनी अपनी महत्वाकांक्षा है भाई)
२) कौन अंगूठा छाप और कौन विद्वान्, बाबा के भक्तों की कतार में भी पढ़े लिखे जाहिलों की भरमार नही जो शहर से लौकी नदारद करवा देते हैं। आख़िर रोग का इलाज योग जो है। मगर यहाँ पढ़े लिखे लोग बाबा को जाहिल नही लगते आख़िर बाबा के धंधे को ये ही तो चलाने वाले हैं।
३) ये हिन्दुतानी लोकतंत्र ही तो है जो हमारा देश बाबा को भी झेल रहा है अन्यथा बाबा का दवाखाना और विवाद के साथ बाबा के इस खेल को राजनैतिक संरक्षण किसी से छुपा हुआ नही है।
४) बाबा ने करों की बात की मगर एक कर को वो छोर गया, हमारी संवेदना को बेचने वा कर। हमारी भावना को बेच कर अपनी दुकानदारी चलने वाले का कर जिसमे बाबा राम देव और उस जैसी कई गुरु ने अपना चकला चला रखा है।
धर्म गुरु...योग गुरु.....राज धर्म...स्व धर्म
सब पर तिलांजलि और स्व हित के लिए बस लोगों की ठेकेदारी चाहे राजनेता हों या धर्म के साथ योग के ठेकेदार।
जय हो।
भाई,रामदेव मुंह फाड़े या फिर पिछवाड़ा लेकिन मानना पड़ता है कि इन्होंने भारतीयों की नब्ज को काफ़ी हद तक समझ लिया है तभी तो ऐसे विचारों की अंतिम शरण स्थली राजनीति में आने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं लेकिन ये रहेंगे किंगमेकर...इनके प्यादे चुनाव लड़ेंगे। अगर इनसे लीगल-रिफ़ार्म्स की बात कर लो तो टट्टियां लगना शुरू हो जाएंगी,जस्टिस आनंद सिंह या ई.टी.जी. वाले मामलों पर चूं ही नहीं करते। करात की बीवी ने इतना किरकिर करा लेकिन ये बहुत ही बड़े डिप्लोमेट निकले विवादों से कन्नी काट गये। देश को एक नया "नेता" मिल गया है भाई जश्न मनाइये...... जो ईशनिंदा बर्दाश्त नहीं करेगा और हो सकता है कि धर्म पर कर लगवा दे :)
ReplyDeleteजय जय भड़ास