कई बार मैंने जब चाहा कि भड़ास पर एक सीमारेखा खींच कर उसे मर्यादित कर दूं तो हर बार मेरे हाथ किसी न किसी ने पकड़ लिये। भड़ास के बारे में एक विशेष दर्शन मेरे मन में सदा ही मौजूद रहा है। हमेशा ही मन और शरीर के संबंधों को अपनी टुटही-फुटही सी पूर्वाग्रहों की तराजू लिये अढैया-पसेरी के रोज ही हलके होते बांट से तौल कर जानने की कोशिश करता रहा। चिकित्सा के क्षेत्र में आने पर मस्तिष्क और मन के बीच पिसते शरीर को देख कर होंठो में ही मुस्कुराहट लीप लेता लेकिन इस लिपाई-पुताई का कारण न समझ पाया था कि ऐसा क्यों हो रहा है। सच तो ये था कि पूर्वाग्रहों की धूल मेरे चादर की पिटाई के कारण झड़ रही थी और निर्मलता आती जा रही थी जिसे मैं समझ ही न पा रहा था। गुरू शक्तियों से परिचय हुआ तो समझा कि क्या नाटक है। भड़ास एक मनोचिकित्सा पद्धति के रूप में मैं सहज ही विकसित कर पाया जिससे कि बहुत सारे लोगों ने आरोग्य पाया। निजी होने की सीमा से परे क्या है भला? समाज, देश, दुनिया या फिर परमात्मा?? कुछ नहीं! हमारी निजता से परे कुछ नहीं है। भड़ास के वैश्विक मंच पर आकर यदि कोई निहायत ही घरेलू बातें रखना चाहता है तो क्या उसे रोकना उचित होगा? उसके लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं कहां कुछ मायने रखती हैं अगर उसका परिवार दुःख में घिरा है। ये एक आम आदमी है जिसकी दुनिया की शुरूआत उससे ही होती है और उसपर ही खत्म होती है लेकिन अचानक ही ये आम आदमी कभी भगत सिंह बन कर उठ खड़ा होता है और कभी चंद्रशेखर आज़ाद........। यही है भड़ास से सरल हुआ भड़ासी। उसे जी लेने दिया जाए, उसे लड़ लेने दिया जाए और गरिया लेने दिया जाए दामाद से लेकर राष्ट्रपति तक को , इंसान से लेकर भगवान तक को ताकि उसके भीतर की ध्वंसात्मक ऊर्जा का रूप बदल कर रचनात्मक हो जाए और वही गाली देने वाला कुंठित व्यक्ति खुशी के गीत गा सके, बच्चों के साथ किलकारियां मार कर सरल हो कर खेल सके........... यही तो है भड़ास या कुछ और जो शेष रह जाता है वह शब्दों से परे है, अव्याख्य है, अकथ है।
जय जय भड़ास
डॉक्टर साहब बात अपने सही कही मै आपसे इत्तेफाक रखता हूँ सिवाय एक बात के वैसे मैंने कहा भी की ये मेरी अपनी सोच है भड़ास आपने शुरू किया तो कोई न कोई सोच तो ज़रूर रही होगी इसके पीछे .....
ReplyDeleteजिस बात पर मै इत्तेफाक नहीं रखता वो बोलने जा रहा हूँ........देखिये जहाँ तक भगवान की बात है तो दुनिया में करोडों लोग हैं जिनको नास्तिक कहा जाता है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की वो उस परमपिता परमेश्वर को गलियाते घूमते हैं रुपेश भाई हम लोग ऐसी बातों को पढना भी गवारा नहीं करेंगे अब आप मुझे चाहे जो कह सकते हैं.
मैंने शुरू में एक लेख पढ़ा था जिसमे लिखा गया था की इसलाम में हिंद महासागर पर बसे उस भाग के बारे में कुछ है ही और नहीं वो लोग इधर की सभ्यता के बारे में जानते थे इसीलिए धार्मिक पुस्तक में यहूदियों से जंग के बारे में लिखा गया है जो आखिरी होगी लेकिन शायद लेख लिखने वाले ने हदीस पर गौर नहीं किया जिसमे उस वक़्त हिंद का ज़िक्र भी था ......और यहाँ की जानकारी भी.
खैर मै इश्वर में पूर्ण विश्वास रखता हूँ और मेरा निवेदन है की अगर बात करनी ही है तो धार्मिक मतभेदों को ख़त्म करने की करनी चाहिए न की धर्म पर ही प्रश्न चिन्ह लगाना चाहिए..........
आपका हमवतन भाई ...गुफरान....अवध पीपुल्स फोरम ..फैजाबाद
एक बात और भगत सिंह या सुभ्श चन्द्र बोस बन्ने के लिए भगवान को निशाना बनाने की ज़रूरत नहीं आपने आप को तलाश करने की ज़रूरत है......जो की आज की दुनिया में कहीं खो चूका है शरीर के अन्दर का इंसान
ReplyDeletebhaiya gufran ji jo log bhagwan ko gali dete firte hain vo to aastik hai kyonki vo to bhagwan ke existence ko sweekar kar rahe hain tab hi to gali de sakte hain, jo hain hi nahi agar main aisa manta hoon to gali kise dunga? chahe hindu ho ya muslim jo jitna jyada educated hai utna jyada hi dogmatic behave karta hai. aap agar national way mein sochte hain to aapke khuda ko desh ke pichhe jana hoga lekin aap ise ninda mante hain to jao main aap jaise ko vote nahi dunga.aap dharm ke difference ko mita nahi sakte balki aap hi koi bhi nahi kar sakta. sari duniya agar muslim ho jaye to bhi problem solve na hogi khud muslim hi 72 alag soch rakhate hain.
ReplyDeleteमेरे बेनाम दोस्त आपकी सोच क्या है आप ने इतनी सी पंक्तियों में दुनिया को बता दिया है और रही बात बहत्तर फिरकों की तो ये भी आपको इसलाम ने ही बताया है और वो भी १४०० साल पहले लेकिन मेरे भाई क्या आप जानते हैं इन सभी ७२ फिरकों की मंजिल एक ही है.........,
ReplyDeleteआपका हमवतन भाई ....गुफरान...अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद...
गुफ़रान भाई,मेहरबानी करके बेनाम,गुमनाम,अनाम किस्म के लोगों पर ध्यान मत दीजिये। ये इतने साहसी तक नहीं हैं जो अपनी बात को अपने परिचय के साथ सामने ला सकें। बहत्तर फ़िरकों ही क्या बल्कि सारे धर्मों की एक ही मंजिल है बस इतना जानता हूं।
ReplyDeleteजय जय भड़ास