मैं जो भी लिख रही हूं उसके लिये बस मैं ही जिम्मेदार हूं क्योंकि ये मेरी निहायत ही निजी सोच है जिसे आप सब के संग बांट रही हूं, बात ईसा मसीह की ही नहीं हज़रत मुहम्मद साहब की भी है कि अगर उन्होंने उस समय की आस्था पर चोट न करी होती तो आज इस पोस्ट का वजूद न होता इस लिहाज से अगर उस समय रक्षंदा आपा होती तो क्या मौजूदा आस्था के खिलाफ़ उठ कर खड़े हुए नबी की मुखालफ़त करतीं या कुछ और सोच रखतीं। मेरा मानना है कि जैसे आज के हिंदू परिवेश में लोग उनके पूर्वज महाराज मनु(शायद इस्लाम के अनुसार हज़रत नूह अल्ले स्सलाम)के द्वारा बनाई वर्ण व्यवस्था को आज अनुकूल नहीं मानते और न ही भारत का कानून मानता है महाराज मनु की व्यवस्था को लेकिन यहां के नेता मुस्लिम वोट बैंक को नाराज कर पाने की स्थिति न होने के कारण हिंदुओं के लिये अलग कानून और मुस्लिमों के लिये अलग कानून बनाए बैठे हैं। मेरे दिल से पूछो तो मैं क्या और रक्षंदा आपा क्या कोई भी आज के भारत में किसी भी परिस्थिति में चार(नहीं दस)शादियों का पक्षधर होगा(निजी तौर पर खुद रक्षंदा आपा भी शायद ये नहीं चाहेंगी कि उनकी तीन और सौतने हों )। अगर शरीयत(जो कि भारतीय संविधान से पूर्णतया इत्तेफ़ाक नहीं रखने वाली विचारधारा है)इन बातों को जायज मानती है तो कम से कम मैं तो सहमत नहीं हूं और खुलेआम इस वैश्विक मंच पर कहती हूं कि जिस मुल्ला-काज़ी को मेरे खिलाफ़ जैसा फ़तवा देना है दे दे,ये लोग एक आम इंसान को इंसानी जड़ों से काट कर एक अलग किस्म का मखलूक बना चुके हैं इस्लाम के नाम पर,फ़तवे और तकवे के उलझाव ही इनके आनंद के मार्ग हैं। मजह्ब को इन लोगों ने मजाक बना दिया है। कोई भी ये न समझ ले कि मैं ये कमेंट किसी आवेश या भावुकता में आकर दे रहीं हूं बल्कि अपने भीतर झांक कर देख ले कि क्या जो सोच इतनी सख्त हो कि आपको सवाल उठाने तक से रोक दे क्या सही होगी लेकिन आपकी आस्था और श्रद्धा है तो दूसरी तरफ साइंस है,फलसफ़ा है,मेरी निजी सोच है कि अगर अल्लाह तआला भी ऐसा निजाम बनाए है जो कि अक्ल(भले ही कोई उसे दुर्बुद्धि कहे)का इस्तेमाल न करने दे तो फिर आज मैं इबलीस के संग होने का एलान कर रही हूं,फैसले के रोज़ चंद सवाल करने हैं मुझे अल्लाहतआला से,मुझे एक बात ये भी पता है कि सारे दार्शनिक और साइंसदान मुझे दोजख में ही मिलने वाले हैं और मुझे नहीं बख्शवाना है खुद को। अब कोई डर नहीं रहा दिल में कि कुछ बुरा न हो जाए इस लिये जो मन में है बिंदास लिख देती हूं और स्वस्थ हूं आप सब भी स्वस्थ और प्रसन्न रहिये अपनी-अपनी बात कह कर। एक बार फिर से उदारता और कठमुल्लेपन के बीच वैचारिक विवाद है तो जरा मैं अपनी कमरानुमा कमर कस कर तैयार तो हो जाऊं। एक तरफ तो लोग इस तरह की जड़बुद्धि जैसी बाते करते हैं और फिर तमाम बातों को ऐसे भी सिद्ध करते हैं कि वो डेढ़ हजार साल पहले कही गयी बातें बहुत साइंटिफ़िक हैं ,क्यों हमें साइंस की कसौटियों की जरूरत पड़ती है अपनी बात सिद्ध करने के लिये या बस हम साइंस की बस वही बातें मानते हैं जो हमारे पक्ष में प्रतीत होती हैं जैसे कि नमाज के पाश्चर्स अच्छे फिजिकल एक्सर्साइजेस हैं लेकिन अगर धरती पर मानव की उत्पत्ति की या आसमान, ग्रहों, नक्षत्रों की बात चलती है तो हम फिर पोंगापंथी होकर अपना ढपोरशंख की तरह बजने लगते हैं। एक बात और रह गयी है तो लगे हाथ उसे भी उगले दे रही हूं मैंने अपने घर आने वाले अब्बा के कुछ दोस्त मौलानाओं से सुना कि ईसाअल्लेस्सलाम एक बार फिर धरती पर आएंगे और नबी की उम्मत में आयेंगे और अखिरी धर्मयुद्ध क्रिस्तानों और मोमिनों के बीच होगा फिर कयामत आयेगी वगैरह-वगैरह......। क्या ये बातें अगर हैं तो कब लिखी गयी होंगी? क्यों इन बातों में भगवान राम या मुरलीवाले कन्हैया का जिक्र नहीं है? कारण मैं बताती हूं अगर मानना है तो मानो वरना किसे परवाह है मैं तो सच समझ गयी हूं कि अगर आखरात खराब होने का यही सबब है तो ये ही सही...। दरअसल जब इस्लाम पनपा और उससे पहले जितने भी नबी आये चाहे वो हज़रत मूसा हों या ईसा मसीह उनका ही जिक्र उन किताबों में मिलेगा और आखिरी जंग क्रिस्तानों से ही लड़ेंगे क्योंकि उन्हें सबसे नजदीकी प्रबलतम प्रतिद्वंदी वे ही नजर आये.....। जबकि धरती के इस तरफ एक और विकसित सभ्यता पहले से ही मौजूद थी जिस जमीन को लोगों ने आर्यावर्त्त कहा है। इस सभ्यता के लोग बहुत पहले ही विकसित हो चुके थे लेकिन अरब की सभ्यता इधर की सभ्यता के बारे में जानती ही नहीं थी इसलिये वहीं लिखा-पढ़ा जो भी समझा गया विकास क्रम में। हिन्दुओं की एक मान्यता है अवतारवाद जो कि मानती है कि हर युग में विष्णु का अवतार होता है और अभी कलियुग में यह अवतार होना बाकी है जिसका नाम "कल्कि" बताया गया है तो जरा सोचो कि क्या मोमिन उससे जंग नहीं करेंगे या वो बिना किसी संघर्ष के मुसलमान बन जाएगा........???? क्यों नहीं लिखा है ये सब??? इसलिये कि वे लोग इस विकसित सभ्यता से अपरिचित थे। सबको हक है कि वो अपनी सोच और बात रखे आप सहमत नहीं हैं तो जैसे उसने लिखा आप भी शब्दों में ही स्याही से विरोध करें न कि लिखने या बोलने वाले को पत्थर मारें या सूली पर चढ़ा दें अगर आप ऐसे हैं तो ये सोच आदिम है कि आप सभ्यता की राह पर अभी इतने विकसित नहीं हो पाए हैं कि उसका सभ्य तरीके से विरोध करें,अभी भी आपके हाथ में शब्द के विरोध में पत्थर आ जाते हैं। अगर आपको लगता है कि मेरी सोच मैं आप पर थोप रही हूं तो आप स्वतंत्र हैं उसे न मानने के लिये कोई आपकी गरदन पर तलवार नहीं रखेगा, न ही कोई जज़िया लगाएगा। अरे मैंने तो हरे भाई की कविता से भी ज्यादा लिख दिया लेकिन अब तक भड़ास शेष है इस विषय पर जो अगर फिर ऐसा माहौल बना तो निकल पड़ेगी।
भड़ास ज़िन्दाबाद
कस कर निकली हुई भड़ास है बच्चे... जरा सोचो कि अगर बजरंग दल या सिमी के कथित नेताओं पर इस पोस्ट को पढ़ने के बाद क्या बीतेगी और वो इसको लिखने वाले का क्या हाल करना चाहेंगे... लेकिन हम मरने से कहां डरते हैं यही तो भड़ास का आफ़लाइन सत्य है
ReplyDeleteजय जय भड़ास