मनीषा दीदी,आपके प्रश्न के उत्तर में महावीर जी ने जो लिखा है वह शब्दशः यहां रख रहा हूंअरे भाई गीता जब रची गई उसमे कोई हिन्दु या जैन का उलेख नही है, भगवतगीता मे जो कहा गया वो हे "सर्वे जना: सुखिना भवन्तु" सभी सुख से रहे यही मुल मन्त्र का जैनो मे अर्थ दिया गया-
"जियो और जिने दो"मैं इस बारे में कहना चाहूंगा कि शायद आप देश के संविधान और कोडीफ़ाइड कानून के संदर्भ में बात कह रही हैं,कदाचित यदि भगवदगीता सारे मानवमात्र के लिये है तो इस हिसाब से जैन धर्मावलम्बी भी भगवदगीता को ही आधार ग्रन्थ मानते हैं लेकिन सिर्फ़ एक सूत्र को??? ये बात कैसी है? आपने कानून का प्रसंग लिया है कि यदि संविधान में हिंदू धर्मावलम्बियों को भगवदगीता पर हाथ रख कर सच बोलने की शपथ दिलानी है यानि कानूनवेत्ता मानते हैं कि बुरे से बुरा व्यक्ति धर्म के प्रति कहीं न कहीं संवेदनशील होता है। सारे आग्रह जैन जनों को कथित हिंदुओं से अलग करते है बस कानून की बात आते ही वे भगवदगीता को स्वीकार लेते हैं क्या कारण है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मामला कुछ ऐसा हो कि जैसे मुझे बाइबल या कुरान पर हाथ रख कर शपथ दिलाई जाए तो मुझे शायद अपराध बो्ध कम होगा मन में रहेगा कि मैंने तो शपथ ली ही नहीं मेरे लिये वे ग्रन्थ भगवदगीता जितने आदरणीय नहीं हैं इसी तर्ज पर जैन भी अदालत में आकर भगवदगीता पर हाथ रख कर शपथ लेकर झूठ बोलने में ग्लानि न महसूस करते हों???सवाल तो है इससे बचा नहीं जा सकता। हिंदू धर्म के तत्त्वों पर भी बहस करी जा सकती है कि भारत के कानून के अनुसार हिंदू कौन हैं और गैर हिंदू कौन हैं?
Here Latest News Of Bollywood Actress and Dubai Cultures , and much more Free , People News Plz Write Comment Your Information in comment Box
No comments:
Post a Comment