एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत आतंकवाद से मुकाबला करने को कटिबद्ध है परन्तु यहाँ के पुराने क़ानून और काम को निबटाने में देरी से काज के बोझ से दबी न्याय प्रणाली इसके रास्ते की रूकावट है और मुंबई आतंकी हमले के बात तो ये स्पष्ट हो चला है।
अमेरिकी विदेश विभाग की जारी कि गयी २००८ वैश्विक आतंकवाद की रिपोर्ट में ये बातें कही गयी है।
रिपोर्ट के अनुसार " आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के सभी प्रयास पुराने और अत्यधिक काम का बोझ झेल रहे न्यायतंत्र की वजह से प्रभावित हुए हैं। "
मुम्बई आतंकी हमले को उद्धृत करते हुए कहा गया है की हमले के दौरान स्थानीय पुलिस के कमजोर प्रशिक्षण और उपकरण की बात साबित हो गयी। इस दौरान हमले का प्रभावी जवाब देने के क्रम में आपसी समन्वय का भी आभाव दिखा। ज्ञात हो की मुम्बई आतंकी हमले में १७५ लोग मारे गए थे।
रिपोर्ट में इस बात को विशेष तौर पर उद्धृत किया गया है कि मुम्बई हमले में शामिल अब तक किसी भी षड्यंत्रकारी को सजा नही दिलाई जा सकी है।
अमेरिकी विदेश विभाग की जारी कि गयी २००८ वैश्विक आतंकवाद की रिपोर्ट में ये बातें कही गयी है।
रिपोर्ट के अनुसार " आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत के सभी प्रयास पुराने और अत्यधिक काम का बोझ झेल रहे न्यायतंत्र की वजह से प्रभावित हुए हैं। "
मुम्बई आतंकी हमले को उद्धृत करते हुए कहा गया है की हमले के दौरान स्थानीय पुलिस के कमजोर प्रशिक्षण और उपकरण की बात साबित हो गयी। इस दौरान हमले का प्रभावी जवाब देने के क्रम में आपसी समन्वय का भी आभाव दिखा। ज्ञात हो की मुम्बई आतंकी हमले में १७५ लोग मारे गए थे।
रिपोर्ट में इस बात को विशेष तौर पर उद्धृत किया गया है कि मुम्बई हमले में शामिल अब तक किसी भी षड्यंत्रकारी को सजा नही दिलाई जा सकी है।
इस हमले के बाद ही भारत ने अपने कानून में संशोधन किया और सुरक्षा एजेंसी को मजबूत करने का फैसला किया।
अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग कि इस रिपोर्ट से साफ़ जाहिर होता है कि हमारे देश के क़ानून में आमूल चूल सुधार कि जरूरत है। आतंकी सजा नही पाते, अगर सजा मिलने कि बारी आती है तो राजनेताओं का समूह आपस में लड़ कर देश के कानून को ही धत्ता बताते हैं।
जस्टिस आनंद सिंह का मामला आज भी अदालत कि गलियारों में घूम रहा है कि इमानदार जज इन्साफ के लिए ख़ुद लड़े क्यूँकी यहाँ के नियम कानून और कायदा तो चंद लोगों की सुविधा का जामा मात्र है।
अनकही का यक्ष प्रश्न जारी है.......
kafi achha likha hai ji
ReplyDeleteअच्छा लिखा है।
ReplyDeleteतुम्हारा ब्लाग बहुत देर से क्यों खुलता है रजनीश? जबकि मेरे इंटरनेट कनेक्शन की रफ्तार काफी तेज है।
hmare yaha fainsle aksar aise hi hote hai...podhe pedh ban jate hai....fainsle hote hote...pics dekh ke dil dahal gya....
ReplyDeleteaapka prashna sahi hai magar jab tak kanoon vyavastha mein sudhar na ho tab tak hum ya hamara desh kitna hi aage badh jaye wo hamesha baisakhiyon par hi chalta nazar aayega.
ReplyDeleteagar hamare desh ka kanoon sahi hota to ab tak afzal ko kab ki fansi lag gayi hoti aur phir kisi ki himmat na hoti mumbai kand karne ki.
अमेरिका की इस रिपोर्ट के बाद जरुरत उत्तेजित होने की नहीं उद्वेलित होने की है। यह बात सही है कि भारत में न्याय मिलने के रास्ते असंभव नहीं तो दुरुह जरूर हैं। औऱ दुख की बात यह है कि इस पर किसी तरह की कार्रवाई का जोर किसी भी राजनीतिक पार्टी की ओऱ से नहीं दिख रहा है।
ReplyDeleteराजू श्रीवास्तव का किया गया व्यंग्य कहीं न कहीं चोट जरूर करता है कि भारत में मुद्दई केस लड़ने नहीं डेट लेने जाता है।
आखिर वो दिन आ ही गया,
ReplyDeleteहमारी न्याय और उसपर छीटाकशी, शायद अब हमारे यहाँ के न्यायविद इस पर अपनी राय दें जो हमारे कानून के आड़ में कानून से आम जनों का शोषण करते हैं,
ये कानून का ही तो झूल है जिसके लिए जस्टिस आनद सिंह आज भी लड़ रहे हैं और जिनका उत्तर देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय भी तैयार नहीं है. आज अमेरिका कल पता नहीं कौन कौन.....
तो क्या भारत के इस सादे गले कानून में परिवर्तन होने का समय आता जा रहा है.
बेहतर और वाजिब प्रश्न है.
भारतीय कानून के प्रति ये अमेरिका का प्रश्न हमें सोचने पर मजबूर कर रहा है.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है आपने.
जारी रहिये....