जूते का निशाना जहाँ था वहां बड़ा सटीक बैठा, २५ साल से सुलगते बुझते मुद्दे को ईंधन मिल चुका है... वैसे लोग चिदंबरम जी की बड़ी तारीफें कर रहें हैं कि देखिये कितने चौक्कने थे, बच गए... काश कि ये चौकन्नापन उनके कैप्टेन में भी होता तो शायद इस देश में हर दूसरे हफ्ते होने वाला जान-माल का नुक्सान तो बच जाता।
एक खबर और पढ़ी "कांग्रेस ने जूता फेंकने वाले को माफ किया"... जाइये बड़े मियां, बड़ा ही गन्दा और निहायत ही वाहियात मजाक कर रहे हैं... इसका भी जवाब एक कहावत से "सौ सौ जूते खाए घुस घुस तमाशा देखे"... कितने जूते खाने के बाद इन नेताओं को अक्ल आएगी कि वे खुदा नहीं जो किसी को माफ़ कर दें?
तीसरी खबर "चिदम्बरम पर जूते फेंकने की घटना की भाजपा ने निंदा की" - भला क्यों न करें आखिर हम पेशा जो हैं, सपने और विश्वास बेचने का कारोबार दोनों का है।चिदंबरम साहब जैसा व्यक्ति भी जूते कि मार से व्यथित होकर कह बैठा "लोग भावना में बहकर ऐसा कर सकते हैं लेकिन मैं उन्हें माफ़ करता हूँ। " माफ़ करियेगा चिदंबरम साहब आप और आपके राजनैतिक साथी इन्ही भावनाओं को तो नहीं समझ पाए. इन्ही उबलती भावनाओं ने आज़ादी की जंग की शुरुआत की थी. गोरे अंग्रेजों ने भी पहले इन्हें isolated incidents ही समझा था... भावनाओं को समझो मंत्री जी, नेताजी... ये जो कभी-कभार इक्का दुक्का गुबार का लीकेज है, किसी दिन सुनामी ले आएगा...
एक साथी ने लिखा "आज पत्रकारों के लिए काला दिन है"... माना कि और भी बहुत लोकतान्त्रिक तरीके हैं विरोध के.... बड़े भाई, आज जब हर चीज़ को आंकने के पैमाने बदल गए हों। तो गाँधी जी के ज़माने का लोकतान्त्रिक तरीका कितना कारगर होगा ??? प्रत्यक्ष्म किम् प्रमाणम्॥ क्या इरोम शर्मिला को न्याय मिल गया? और घटिया उदहारण दूं ...
देश भर को "गांधीगिरी" का पाठ पढ़ने वाला हमारा आपका, मीडिया का दुलारा "मुन्नाभाई"
रंगे सियार की तरह अपनी हकीकत खोल चुका है, नेताओं की हुआं-हुआं सुनी नहीं कि जाग गया अन्दर का संजय दत्त। इकबालिया बयान देने वाला कह रहा है कि, "कांग्रेस
नेफंसवाया था।" जिस बाप को ज़िन्दगी भर शर्मसार करते रहे अब उसकी मौत को राजनीतिक रंग दे रहे हैं... वाह रे वाह गाँधीगिरी और वाह रे वाह मेरे मुन्ना...
मुद्दों से तो हमेशा बचते रहे नेताजी लोग, जूते से भी बच गए लेकिन जूते ने मुद्दा दुबारा सुरसा के खुले मुंह की तरह राजनीतिज्ञों के सामने रख दिया है, बच सको तो बच लो...
खबरों का शीर्षक शायद सबसे उपयुक्त होता ... "जागरण के जरनैल ने किया देश भर को जागृत"
भइया अब अगर यही स्थिति रही तो वो दिन दूर नहीं जब लोग जूते पर पुराण या महाकाव्य लिखने बैठ जाएंगे.....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
मित्र, टिपण्णी के लिए धन्यवाद ,
ReplyDeleteइसको समाज के धैर्य के बिखरने के नज़रिए से देखा जाना चाहिए, व्यावसायिकता के नज़रिए से नहीं... हमारे वोट से चुनकर संसद में जाने वाले नेता हमें रोज़ जूता मारते हैं, ठेंगा दिखाते हैं. सालों तक न्यायपालिका में राजनितिक दबाव डालकर सीबीआई से केस लटकाए रखवाना और फिर अचानक क्लीन चिट देने का दौर... क्या रोज़ जूता खाने जैसा नहीं?
पत्रकार को अगर आपने जज्बातों पर नियंत्रण करना सिखा दिया तो पत्रकार कभी शिद्दत के साथ पूरा सच नहीं लिख पायेगा... क्या जज्बातों को व्यक्त करना सिर्फ कविताओं और फंतासी कहानियो में सिमट कर रह जायेगा?
suno mantriji, netaji...ye jo kabhi-kabhar ekka-dukka gubar ka leakage hai, kisi din sunami le ayega...sahi agah kiya hai apne.
ReplyDeletesuno mantriji, netaji...ye jo kabhi-kabhar ekka-dukka gubar ka leakage hai, kisi din sunami le ayega...sahi agah kiya hai apne.
ReplyDeletedhanwaad Manoj Bhai :)
ReplyDeleteho sakta hai ..yah treler ho ...jis din logo ka dhairy jabab de gaya ..us din juton ki baadh aa jayegi ..jis din garibon ko aadhi roti bhi nasib nahi hogi us din log sadak par aayege ...aur tab chhupane liye in bhedion ko jagah nahi milegi....
ReplyDeleteभाई! मैने उस जूते की तस्वीर देखी काफ़ी मंहगा जूता लग रहा था लेकिन ये मंत्री कमीने इस जूते के लायक नहीं है। इनके लिए एक खास खिलाने योग्य जूता रेसिपी है कि पहले एक चमड़े का पुराना फटा जूता ले लिया जाए जिसका तल्ला टूट चुका हो फिर उसे रात में गटर के जल में पूरे डूब जाने तक रात भर भिगो कर रखें और सुबह इसके तल्ले पर एक पर्त भैंस के ताजे गोबर की लगा कर इसे इस्तेमाल करा जाए
ReplyDeleteजय जय भड़ास