अखबार का आइना, योद्धा कौन ?


जब बात आती है अखबार की तो आमजन सिर्फ़ इतना जनता और सोचता है की पत्रकार ख़बर लिखते हैं और हम पढ़ लेते हैं, और इस कल्पना से आज तक लोग जुदा नही हुए मगर क्या सिर्फ़ इतने से अखबार का काम निबट जाता है


लोगों के हाथ में अखबार हो, के लिए जान पर खेलता प्रसार विभाग

घर जाने को स्टेशन पहुंचा तो रात के एक बजने वाले थे, ट्रेन आने में देरी थी सो स्टेशन पर चहल कदमी कर रहा था जब अनायास ही इस दृश्य ने मेरा ध्यान अपनी और खींचा। अखबार से लगाव और लिप्तता होने के कारण जा पहुंचा इन के बीच। हलकी फुल्की बातें भी की मगर अखबार के इन वीर सेनानी के पास समय कहाँ था। अगले खेप के लिए फ़िर से तैयारी में जो जाना था।


ट्रेन कहीं छुट ना जाए, जल्दी करो, दूसरी ट्रेन भी आने वाली है

बातचीत के बाद एक अप्नत्व और प्रेम भरे निगाहों से इन्हें देखता रहा और सोचता रहा की अखबार के वास्तविक सेनापति कौन हैं। कितना क्षद्म है !!!!


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