चुनाव की चहचहाहट में चीनी के बढे हुए दाम भी बेमानी से लगाने लगे हैं। मंदी की महामारी में भी मन बल्लिओं उछल रहा है, अरे मेरा नही भाई! ये हाल है, देश के ६७ करोड़ १४ लाख ८७ हज़ार ९३० मतदाताओं का। इन्ही मतदाताओं को लुभाने के लिए मनमाने काम भी किए जा रहे हैं। कही नोट बांटे जा रहे हैं, तो कही चोट मारके उसे सहला दिया जा रहा है। जो वास्तव में खुश है उनको भी जान ही लीजिये, देश भर के चोर और उनसे भी चतुर नेताओं का पूछिये मत क्या हाल है? नेताओं के चारण तो आपलोग समझते ही होंगे, हाँ भाई वाही चाटुकार लोग जो हर खुशी और गम के मौके पर नेताओं का चरणवंदन करने से नही चूकते! होली के महत्वपूर्ण मौके पर नेताओं ने कई तीर एक साथ साध लिए। होली मिलन समारोह आयोजित करके पुराने वादों को भूल जाने की कवायद की गई और नए वादों को दिमाग में फिट कर लेने की कोशिश! लोकतंत्र का महापर्व यानि ''आम-चुनाव'' कहने को तो ये आम है लेकिन सच मानिये तो ये बहुत ही खाश होता है। खाश इसीलिए की इसमे हर ''आम '' की भागीदारी सुनिश्चित होती है। होली मिलन समारोह को पास से देखने का मौका मिला, नेताजी की सफ़ेद लकदक पोशाक पर लाल, पीले, हरे और न जाने कौन-कौन से रंग के छीटे पड़े हुए थे। मंच पर आते ही चारणों ने चरणवंदन का जो सिलसिला सुरु किया वह अंत तक जारी रहा। परेशां होकर नेताजी ने अपनी चप्पल निकली और मंच पर ही लटका दिया। फिर बोले - इसी को चुमते चले जाइये ! अब क्या था सारे चाटुकार चींटी की तरह चप्पल पर ही चिपकने लगे ऐसा लगा जैसे इसी को चाटकर स्वर्ग चले जायेंगे। अब नेताजी रंगीन हो गए थे, रंग में आते ही बोले- देखिये देश की शान अब आप मतदाताओं के हाथ में है। आप ही एक वोट के जरिये देश को बचा सकते हैं। इतने में ही एक बच्चा रोने लगा। तब उसकी माँ बोली- चुप हो जा बेटा! नही तो नेताजी चले जायेंगे। बच्चा चुप हो गया। नेताजी बोल रहे थे- देखिये पिछली बार मैंने जो वादे आपसे किए थे, उसे बुरा सपना समझकर भूल जाइये और नए सपनों को अपनी आंखों में सजाइए। नेताजी बातों से इमानदार लग रहे थे, वह तो पुलिस के छापों से पता चलता है की वे कितने बेईमान हैं। नेताजी ने कुछ नोट हवा में लहराए और चाटुकारों ने नेताजी की पार्टी के झंडे फहराए। जनता लोग नोट पर भहराए ही थे की चप्पुओं ने कुछ नोट अपने अपने खीसे में दबाये। ये सब चल ही रहा था की मेरा पत्रकार मन विचलित हो गया। मैंने सोचा क्या इस देश का कुछ नही हो सकता ! चोर खुलें आम ख़ुद को चोर कह रहा है फिर भी जनता मानने को तैयार नही है। नेता सीधे आंखों में धुल झोक रहे हैं फिर भी जनता की आँखें नही खुलती। दारू, मुर्गे की टांग और चंद रुपयों में वोट खरीदकर, जनता के भविष्य पर चोट की जा रही है और जनता को दर्द महसूस भी नही हो रहा। धर्म, जाती, लिंग और वर्ण के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है और लोग खुशी-खुशी गुमराह हो रहे हैं। मैं ये सब सोच ही रहा था की नोट लपकने के चक्कर में किसी ने इतना जोर का धक्का मारा की मैं मुह के बल गिर गया। इतना ही नही, किसी को मुझ पर तरस नही आया लोग मुझ कचरते ही जा रहे थे। शायद मीडिया भी मेरी तरह ही गिर गई है या यूँ कहिये की जमींदोज हो गई है। इसलिए लोगों को कुछ दिख नही रहा है। या लोगों को जो मीडिया दिखा रही है , उसपर से भरोसा उठता ही जा रहा है तभी तो लोग मीडिया की इस गिरी हालत पर भी उसे दबाये जा रहे हैं। खैर किसी तरह मैं उठा और अपनी हालत पर सरसरी नज़र डाली, अचानक एक नोट मेरे पैर के पास आ गिरा और मैंने उस हरे नोट को उठाया फिर डॉक्टर साहेब से उसी नोट के जरिये अपने चोटों पर लाल दवाई लगवाई और घर जाकर चुपचाप सो गया।
जय भड़ास जय जय भड़ास!
midia par se logo ka bharosa future me aur uthega....
ReplyDeletekai dino baad aapaka article padh achha laga.
Markandey bhai..roji roti ke liye kuchh jyada hi bhag-doud karni pad rahi hai..aur koi bat nahi.
ReplyDeletemanoj ji apki lekhani me aam adami ki pida nazar aati hai. netaji ka sahi charitra darshaya hai apne. jordar lekhani hai jari rakhiye.
ReplyDeletemanoj ji apko shayad main janta hun. kya apne BHU se padhai kari hai? main Ram milan mourya. B.A english hon. in 2002. yadi pahchan liya ho to kripya. contact karein.9868441741
ReplyDeleteशानदार भड़ास,
ReplyDeleteलगे रहिये.
जय जय भड़ास