होली खेलत है कैलाशधनी।

होली खेलत है कैलाशधनी।
कोई जो रहवे रंगमहल में‚ कोई श्मशान वास सखी
होली खेलत......
कृष्ण जी रहवें रंगमहल में‚ शम्भू श्मशान वास सखी
होली खेलत......
कोई जो चापे पान सुपारी‚ कोई धतूरे को पान सखी
होली खेलत......
कृष्ण जी चापें पान सुपारी‚ शम्भू धतूरे को पान सखी
होली खेलत......
कोई जो पहने मलमल खास‚ कोई बाघम्बर छाल सखी
होली खेलत......
कृष्ण जी पहने मलमल खास‚ शम्भू बाघम्बर छाल सखी
होली खेलत......

बचपन से ही यह गीत हमारे भीतर एक अजीब तरह की मस्ती पैदा कर देता था। आज भी जब हारमोनियम की तान‚ ढोलक की थाप और कंटर की झनझनाहट में यह गीत गाया जाता है तो मन उल्लास से भर जाता है।

3 comments:

  1. कठैत जी यकीन मानिये आपने तो गांव और बचपन याद दिला दिया लेकिन मुंबई में कहां है ये गीत-संगीत और उल्लास...:(
    आप सभी भड़ासियों को मुंबई के सभी भड़ासियों की तरह से होली व ईद की हार्दिक शुभकामनाएं
    जय जय भड़ास

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  2. चन्दन की खुशबु
    रेशम का हार
    सावन की सुगंध
    बारिश की फुहार
    राधा की उम्मीद
    "कन्हैया' का प्यार
    मुबारक हो आपको
    होली का त्यौहार

    Regards

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  3. भाई,
    धन्यवाद इस सोंधी मिटटी से सने रंगीले कविता का. साधुवाद आपका.
    मुबारकवाद सबको.
    जय जय भड़ास

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