दोस्तों अपनी पुराणी कविता पोस्ट कर रहा हूँ बस आशीर्वाद दीजिये ।
दलों के दलदल में कितने नाम,
खास नही कोई सब हैं आम।
जात पात धर्म हैं इनके हथियार,
लडाई दंगे बदले की ये करते बात।
बहुतेरे रंग में रंगी इन सबकी जात,
देख कर इनको गिरगिट को आती लाज।
भूल गए ये रोटी कपड़ा मकान की बात,
भूल गए ये जनता के सम्मान की बात।
शिक्षा शान्ति रोजगार इनको नही भाता,
रिश्तों के नाम आर इनके न जोरू न जाता।
बढाते टैक्स लगाते वैट करके विकास की बात,
बदले में देते हमको महगाई स्मारक पार्क की सवगात।
गुफ़रान भाई साधुवाद स्वीकारिये, गहरी सोच जो काव्य में व्यक्त हो पायी....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
गुफ़रान भाई सुन्दर कविता है पुरानी है पर भाव आज भी समसामयिक हैं....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
धन्यवाद् रुपेश भाई कभी कभी कुछ उलझन होती है तो ही लिखता हूँ आपने जैनब बहन ने तारीफ कर दी यही बहोत है......,
ReplyDeleteजात पात धर्म हैं इनके हथियार
ReplyDeleteलडाई दंगे बदले की ये करते बात....
नियमित लिखते रहें.......