झोपड़पट्टी के कुत्ते की गरीबी और उसकी परेशानियों को केन्द्र बिन्दु बना कर जो फिल्म बनाई गई है उसकी अपार सफ़लता हर ओर दिख रही है।
उनका क्या करेंगे जो अपनी गरीबी का नंगा तमाशा फिल्म में चित्रित करे जाने का उत्सव मना रहे हैं धारावी में?????अगर ऐसा ही रहा तो महाराष्ट्र सरकार मुंबई में दस-बारह ऐसी ही धारावी जैसे विशाल झोपड़पट्टियां और कमाठीपुरा जैसे रेडलाइट एरियाज़ बनाने पर विचार करने लगेगी आखिर इनसे विदेशी फिल्म निर्माताओं को प्रेरणा जो मिलती है और फिर आस्कर एवार्ड भी मिलता है।
Guruji sahi likha hai apne ye bina puchh wale KUTTE kuchh bhi kar sakte hain.
ReplyDeleteक्या बात है डा.साहब बड़ी जोर से रगेदा है कमबख्तों को....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
गुरू एकदम कस कर उल्टी करी है सारे के सारे बस इसी बात का त्योहार मनाए पड़े हैं कि हमारी गरीबी के चित्रण को कितने अच्छॆ तरीके से जगजाहिर करा गया है गटर के कीड़े खुशियां मना रहे हैं अपने लिजलिजेपन की......
ReplyDeleteजय जय भड़ास