तुमने ,
उस दिल रुबा को याद कर
कभी प्यार की बारिश भी किया करो कभी कभी ,
न हिंदू बनो ,
न मुसल मन बनो ,
इन्सान भी बना करो कभी कभी ,
हर वक्त जलते रहते हो इर्ष्या की आग मे ,
पड़ोसी को भाई भी माना करो कभी कभी ,
मै अकेला हु ,
वो अकेला है ,
तुम अकले हो ,
आओ मिल कर एक नया समाज बनाये कभी कभी .......
अमित भाई,
ReplyDeleteनमन,
आपके इस बेहतरीन पंक्तियों ने आपका मुरीद बना दिया.
बस ऐसे ही राष्ट्र संदेश देते रहिये.
लोगों की आँख कभी न कभी तो खुलेगी ही.
जय जय भड़ास