देश की राजधानी दिल्ली में शीला जी एक आयाम लेकर आयीं। दिल्ली में लगातार तीन बार जीत दर्ज कर इतिहास भी रचा और अपनी दमदार उपस्थिति के साथ भाजापा को बौना भी बनाया। छोटे कद की शीला जी के आगे लंबे चौडे मल्होत्रा साहब बौने ही नही अपितु टींगे भी नजर आए। मगर क्या ये लोकतंत्र के शुभता का पहचान है या तानाशाही और निरंकुशता की और बढ़ते कदम ?
इतिहास गवाह है की जब जब लगातार सत्ता एक ही हाथों में रही है तो शासक निरंकुश हो गया है, बंगाल से बेहतर उदाहरण नही हो सकता जिसने शिखर से शुन्यता वाम के कारण तय की है, मुंबई से पूर्व हमारे देश की आर्थिक राजधानी रहा कलकत्ता आज अपने आखिरी विराम की और बढ़ रहा है तो नि:संदेह वाम के कारण ही जिसने विकास के तमाम रास्ते बंद कर दिए और जब आँख खुली तो नैनो भी गँवा दिया। बिहार का लालू राज आज भी बिहार की ध्वस्त हो चुकी विकास का कारण है।
विगत दस सालों में सच में विकास जैसे नदियों के बाढ़ की तरह बही है, मेट्रो हो या उपरी पुल का जाल। सड़क हो या अवैध निर्माण। झुग्गी हो या व्यवस्थिक कालोनी, बस शीला ही शीला और विकास ही विकास जैसे कि दिल्ली के विकास की बयार बह रही हो जिसके सुर में सुर मीडिया मुख्यमंत्री के साथ चाय की चुस्की लगा कर गा रही हो।
याद आता है मुझे शीला जी का वो बयान जब उनसे ट्राफिक के बारे में पूछा गया था कि दिल्ली में जाम कि समस्या दिनानुदिन बढ़ रही है तो शीला जी का जवाब था कि दिल्ली तरक्की कर रही है लोग विकास कर रहें हैं तो लोगों के पास सुविधाएँ भी बढ़ रही है। ये समस्या तो आना ही है। सच में दिल्ली बड़ी तरक्की कर रही है, जिनके पास मारुती ८०० था अब वो बड़ी वाली गाड़ी में हैं, जिनके पास एक कार था अब चार हैं, दो कमरे के फ्लैट से लोग चार कमरे में शिफ्ट हो गए हैं मगर क्या ये सही मायने में विकास है? क्या ये उच्च वर्ग के लोग ही विकास की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं?
जरा नीचे की तस्वीर देखिये, ये भी दिल्ली के विकास में सहभागिता कर रहे हैं। कुल्छे छोले वाला जिसका पुश्तैनी धंधा ये ठेला है बाप के बाद अब ये भी इसी ठेले पर है हाँ दाम दो रूपये कि जगह दस रूपये हो गए हैं। चाय वाला दस साल से यहीं बिना छत के पेड़ के नीचे चाय बेच रहा है, बस चाय एक रूपये कि जगह चार रूपये पर पहुँची है और उसके साथ मूंगफली बेचने वाला जब से शीला जी मुख्यमंत्री बनी हैं मूंगफली बेच रहा है।
बस विकास उन लोगों की जो पहले से विकसित थे, हाँ पत्रकारों में जरुर जो पहले डीटीसी से कार्यालय जाया करते थे ने अपनी चौपाया ले ली है।
जय विकास की।
जय दिल्ली सरकार की।
जय शीला दीक्षित की।
इतिहास गवाह है की जब जब लगातार सत्ता एक ही हाथों में रही है तो शासक निरंकुश हो गया है, बंगाल से बेहतर उदाहरण नही हो सकता जिसने शिखर से शुन्यता वाम के कारण तय की है, मुंबई से पूर्व हमारे देश की आर्थिक राजधानी रहा कलकत्ता आज अपने आखिरी विराम की और बढ़ रहा है तो नि:संदेह वाम के कारण ही जिसने विकास के तमाम रास्ते बंद कर दिए और जब आँख खुली तो नैनो भी गँवा दिया। बिहार का लालू राज आज भी बिहार की ध्वस्त हो चुकी विकास का कारण है।
विगत दस सालों में सच में विकास जैसे नदियों के बाढ़ की तरह बही है, मेट्रो हो या उपरी पुल का जाल। सड़क हो या अवैध निर्माण। झुग्गी हो या व्यवस्थिक कालोनी, बस शीला ही शीला और विकास ही विकास जैसे कि दिल्ली के विकास की बयार बह रही हो जिसके सुर में सुर मीडिया मुख्यमंत्री के साथ चाय की चुस्की लगा कर गा रही हो।
याद आता है मुझे शीला जी का वो बयान जब उनसे ट्राफिक के बारे में पूछा गया था कि दिल्ली में जाम कि समस्या दिनानुदिन बढ़ रही है तो शीला जी का जवाब था कि दिल्ली तरक्की कर रही है लोग विकास कर रहें हैं तो लोगों के पास सुविधाएँ भी बढ़ रही है। ये समस्या तो आना ही है। सच में दिल्ली बड़ी तरक्की कर रही है, जिनके पास मारुती ८०० था अब वो बड़ी वाली गाड़ी में हैं, जिनके पास एक कार था अब चार हैं, दो कमरे के फ्लैट से लोग चार कमरे में शिफ्ट हो गए हैं मगर क्या ये सही मायने में विकास है? क्या ये उच्च वर्ग के लोग ही विकास की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं?
जरा नीचे की तस्वीर देखिये, ये भी दिल्ली के विकास में सहभागिता कर रहे हैं। कुल्छे छोले वाला जिसका पुश्तैनी धंधा ये ठेला है बाप के बाद अब ये भी इसी ठेले पर है हाँ दाम दो रूपये कि जगह दस रूपये हो गए हैं। चाय वाला दस साल से यहीं बिना छत के पेड़ के नीचे चाय बेच रहा है, बस चाय एक रूपये कि जगह चार रूपये पर पहुँची है और उसके साथ मूंगफली बेचने वाला जब से शीला जी मुख्यमंत्री बनी हैं मूंगफली बेच रहा है।
बस विकास उन लोगों की जो पहले से विकसित थे, हाँ पत्रकारों में जरुर जो पहले डीटीसी से कार्यालय जाया करते थे ने अपनी चौपाया ले ली है।
जय विकास की।
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जय शीला दीक्षित की।
विकास का दूसरा पहलू सदैव से ऐसा ही रहा है।
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