अजमल कसाव यानी कि आतंकी कसाव, हत्यारा कसाव, जघन्य कसाव, नृशंस कसाव और न जाने क्या क्या और किस किस पार्यवाची से सम्मानित कसाव।
कसाव ने माना कि वो पाकिस्तानी आतंकवादी है, उसने ये भी माना कि वो लश्कर से प्रशिक्षित हो कर आया था। आज वो हिरासत में है और बयानों का चिटठा पुलिस का पकड़ा रहा है।
कसाव के हाथो लिखे चिठ्ठी से "मैं सबसे बड़ा गुनाहगार हूँ, कितने बेक़सूर लोगों की जान ली है, खुदा मुझे माफ़ करे"। आगे वह लिखता है कि "सबसे बड़ा गुनाहगार तो मैं अपने अम्मी और अब्बा का हूँ, उनके दिल को ठेस पहुँचाया है।"
कसाव पाकिस्तान सरकार से निवेदन करता है कि इस्माइल खान का अन्तिम संस्कार पकिस्तान में करवाए। क्यौंकी ये उसकी आखिरी ख्वाहिश थी।
लश्कर - ऐ तयबा के बारे में कसाव ने स्पष्ट लिखा है कि "बहक गया था मैं, लश्कर के दरिंदों ने मुझे फंसा दिया।"
अंत में कसाव लिखता है कि "पुरे पाकिस्तान को मैंने बदनाम किया है, खुदा मुझे माफ़ करे।"
ये कसाव के लिखे पत्र के हाले बयां हैं जिनका जिक्र जरुरी था क्यूंकि इनके बिना बात अधूरी रह जाती। आज पुरे देश में सिर्फ़ एक ही चर्चा, एक ही बात एक ही धुंआ आतंकवाद, पाकिस्तान, हमला, सबक, और पता नही क्या क्या। सभी अखबार आतंकी हमले के ख़बर से पते हुए हैं तो तमाम खबरिया चैनल आतंकी हमले नामक लोटरी को रोज ही ख़बर के साथ विशेष चर्चा बना कर भुना रही है। हमले में मरने वाले परिवार हमारे परिवार हैं और उनके साथ पुरा देश एक है मगर ?
क्या हमारी भावनाएं, हमारी संवेदना को बेचने का ठेका किसी ने ले लिया है, जब दंगे में मुस्लिम परिवार को हिंदू परिवार बचाता है, या हिंदू परिवार को मुस्लिम परिवार बचाता है तो वो हमारी अपनी संवेदना होती है किसी ठेकेदार के ठेके वाली भावना नही होती है, मगर आज जैसे लग रहा है कि पुरे देश को एक करने के बहाने अपनी ठेकेदारी जताने की कोशिश की जा रही है।
पहले नेता उसके बाद पत्रकार और ठेकेदारों कि श्रेणी में अगला कौन?
कसाव के बयान और उसकी आत्मा से स्वीकरोक्ती ने मुझे हिला कर रख दिया, बस एक ही ख़याल कि हम क्या कर रहे हैं, सो ब्लॉग पर पड़ोस दिया शायद कोई उत्तर दे ?
आज हर कोई सिर्फ़ आतंकवाद की बात करता है, आतंकी के खात्मे कि बात चाहे हमें किसी से युद्ध क्यूँ न करना परे करो, एक एक आतंकी को चुन चुन कर मार डालो पकिस्तान पर हमला कर दो, सरे को जान से मार दो बस सिर्फ़ मौत और मौत, मगर जब कसाव के लिखे को पढ़ा तो सोचनीय हो गया कि हमें आतंक को समाप्त करना है या आतंकी को?
कसाव को सारे कार्यों को अंजाम देने के बाद अफ़सोस है, वो अपने को गुनाहगार मानता है, वो मानता है कि उसे बहकाया गया है, आख़िर क्योँ? क्या वजह है कि युवा आतंकवाद का रास्ता चुनते हैं, क्योँ उनको बहकाया जाता है, क्योँ वो दिशा भ्रमित हो जाते हैं। प्रश्न इतना भारी नही है, और कमोबेश उत्तर सभी जानते हैं, मगर क्षद्म चरित्र के लोग स्वीकोरोक्ती में कभी सामने नही आते। इनके आतंकी बनने के लिए हम गुनाहगार हैं, इनको पथ भ्रष्ट करने के लिए हमारा समाज जिम्मेदार है, क्यूँकी सफ़ेद दुनिया के काले लोग अपने चेहरे से लबादे नोच देने वालो का सामना नही करना चाहते। इतिहास गवाह है कि जितने भी आतंकी, या दस्यु, या फ़िर डकैत, यहाँ तक कि चोर उचक्के और जेबकतरे भी अपने कार्य से शर्मिन्दा होते हैं मगर हमारा नपुंशक समाज उनको स्वीकरोक्ती नही देता। कचड़ा बिन्ते छोटे छोटे बच्चे, सड़क के किनारे भीख मांगते बच्चे, झोपरपट्टी के बच्चे, या फ़िर खानाबदोश बच्चे हमारे समाज के सफेदपोश इनमे से किसको गले लगना पसंद करेंगे, और अगर इनका हक नही दिया जाए तो ये क्या करें।
जरुरत है बदलाव की, सामजिक समरसता और एकता के साथ साथ मंविया भावना और संवेदना कि जो बिकाऊ होते समाज के बाजारवाद की बाजार में कहीं खो गया है। आतंकी कसाव नही है आतंकी हम हैं, आतंकवाद कसाव ने नही किया आतंकवाद तो हमने फैलाया है, और आने वाले सालों साल तक होने वाली इस तमाम घटना का जिम्मेदार कोई नही सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा समाज होगा।
जय हिंद
जय भारत
वंदे मातरम्
कसाव ने माना कि वो पाकिस्तानी आतंकवादी है, उसने ये भी माना कि वो लश्कर से प्रशिक्षित हो कर आया था। आज वो हिरासत में है और बयानों का चिटठा पुलिस का पकड़ा रहा है।
कसाव के हाथो लिखे चिठ्ठी से "मैं सबसे बड़ा गुनाहगार हूँ, कितने बेक़सूर लोगों की जान ली है, खुदा मुझे माफ़ करे"। आगे वह लिखता है कि "सबसे बड़ा गुनाहगार तो मैं अपने अम्मी और अब्बा का हूँ, उनके दिल को ठेस पहुँचाया है।"
कसाव पाकिस्तान सरकार से निवेदन करता है कि इस्माइल खान का अन्तिम संस्कार पकिस्तान में करवाए। क्यौंकी ये उसकी आखिरी ख्वाहिश थी।
लश्कर - ऐ तयबा के बारे में कसाव ने स्पष्ट लिखा है कि "बहक गया था मैं, लश्कर के दरिंदों ने मुझे फंसा दिया।"
अंत में कसाव लिखता है कि "पुरे पाकिस्तान को मैंने बदनाम किया है, खुदा मुझे माफ़ करे।"
ये कसाव के लिखे पत्र के हाले बयां हैं जिनका जिक्र जरुरी था क्यूंकि इनके बिना बात अधूरी रह जाती। आज पुरे देश में सिर्फ़ एक ही चर्चा, एक ही बात एक ही धुंआ आतंकवाद, पाकिस्तान, हमला, सबक, और पता नही क्या क्या। सभी अखबार आतंकी हमले के ख़बर से पते हुए हैं तो तमाम खबरिया चैनल आतंकी हमले नामक लोटरी को रोज ही ख़बर के साथ विशेष चर्चा बना कर भुना रही है। हमले में मरने वाले परिवार हमारे परिवार हैं और उनके साथ पुरा देश एक है मगर ?
क्या हमारी भावनाएं, हमारी संवेदना को बेचने का ठेका किसी ने ले लिया है, जब दंगे में मुस्लिम परिवार को हिंदू परिवार बचाता है, या हिंदू परिवार को मुस्लिम परिवार बचाता है तो वो हमारी अपनी संवेदना होती है किसी ठेकेदार के ठेके वाली भावना नही होती है, मगर आज जैसे लग रहा है कि पुरे देश को एक करने के बहाने अपनी ठेकेदारी जताने की कोशिश की जा रही है।
पहले नेता उसके बाद पत्रकार और ठेकेदारों कि श्रेणी में अगला कौन?
कसाव के बयान और उसकी आत्मा से स्वीकरोक्ती ने मुझे हिला कर रख दिया, बस एक ही ख़याल कि हम क्या कर रहे हैं, सो ब्लॉग पर पड़ोस दिया शायद कोई उत्तर दे ?
आज हर कोई सिर्फ़ आतंकवाद की बात करता है, आतंकी के खात्मे कि बात चाहे हमें किसी से युद्ध क्यूँ न करना परे करो, एक एक आतंकी को चुन चुन कर मार डालो पकिस्तान पर हमला कर दो, सरे को जान से मार दो बस सिर्फ़ मौत और मौत, मगर जब कसाव के लिखे को पढ़ा तो सोचनीय हो गया कि हमें आतंक को समाप्त करना है या आतंकी को?
कसाव को सारे कार्यों को अंजाम देने के बाद अफ़सोस है, वो अपने को गुनाहगार मानता है, वो मानता है कि उसे बहकाया गया है, आख़िर क्योँ? क्या वजह है कि युवा आतंकवाद का रास्ता चुनते हैं, क्योँ उनको बहकाया जाता है, क्योँ वो दिशा भ्रमित हो जाते हैं। प्रश्न इतना भारी नही है, और कमोबेश उत्तर सभी जानते हैं, मगर क्षद्म चरित्र के लोग स्वीकोरोक्ती में कभी सामने नही आते। इनके आतंकी बनने के लिए हम गुनाहगार हैं, इनको पथ भ्रष्ट करने के लिए हमारा समाज जिम्मेदार है, क्यूँकी सफ़ेद दुनिया के काले लोग अपने चेहरे से लबादे नोच देने वालो का सामना नही करना चाहते। इतिहास गवाह है कि जितने भी आतंकी, या दस्यु, या फ़िर डकैत, यहाँ तक कि चोर उचक्के और जेबकतरे भी अपने कार्य से शर्मिन्दा होते हैं मगर हमारा नपुंशक समाज उनको स्वीकरोक्ती नही देता। कचड़ा बिन्ते छोटे छोटे बच्चे, सड़क के किनारे भीख मांगते बच्चे, झोपरपट्टी के बच्चे, या फ़िर खानाबदोश बच्चे हमारे समाज के सफेदपोश इनमे से किसको गले लगना पसंद करेंगे, और अगर इनका हक नही दिया जाए तो ये क्या करें।
जरुरत है बदलाव की, सामजिक समरसता और एकता के साथ साथ मंविया भावना और संवेदना कि जो बिकाऊ होते समाज के बाजारवाद की बाजार में कहीं खो गया है। आतंकी कसाव नही है आतंकी हम हैं, आतंकवाद कसाव ने नही किया आतंकवाद तो हमने फैलाया है, और आने वाले सालों साल तक होने वाली इस तमाम घटना का जिम्मेदार कोई नही सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा समाज होगा।
जय हिंद
जय भारत
वंदे मातरम्
मैं आपकी बात से सहमत हूं कि आतंकवाद की जड़ें तलाशने की बात करना आदर्शवाद नहीं है बल्कि यही तो है अमर शहीद भगत सिंह का सपना...
ReplyDeleteजय जय भड़ास
रजनीश भाई बिलकुल सही बात है हम सारे के सारे इसी सुर में बोलते हैं कि आतंकवाद समस्या नहीं है बल्कि उसकी उत्पत्ति के कारक मूल समस्या हैं उन्हें तलाश कर समाप्त न करा गया तो यह समस्या किसी न किसी रूप में हर जगह देर-सबेर सामने आती ही रहेगी।
ReplyDeleteजय जय भड़ास