अजमल कासव बनाम कैप्टन सिंह

सबसे पहले मैं आपको शीर्षक में दिए गए नाम और उनके काम का परिचय दे रहा हूँ। पहला नाम है अजमल कसाव, शायद यह नाम अपने सुन रखा है। अगर नही सुना तो कोई सा एक न्यूज़ चैनल चला लीजिये आपको पता चल जाएगा की यह किस दरिन्दे का नाम है। अजमल कसाव वोही है जिसे मुंबई हमले के दौरान जिन्दा पकड़ लिया गया था। ये वोही पाकिस्तानी आतंकवादी है जिंसने वीटी स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग करके ५३ लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। ये वोही है जिसने करकरे , साल्वे और आमटे को गाड़ी में ही भुन दिया था। ये वोही आतंकवादी है जिसे गिरगांव चौपाटी पर हुई गोलीबारी में जिन्दा पकड़ा गया है। दूसरा नाम है , कैप्टन सिंह ! ये वोही कैप्टेन सिंह हैं जिन्होंने आतंकी हमले में अपनी जान की बाज़ी लगा दी। ये वोही कैप्टेन सिंह है जिसने कमांडो करवाई के दौरान रूम नम्बर १८ में आतंकियों के होने की भनक मिलने के बाद रूम के दरवाजे को उडा दिया और जैसे ही वे आतंकियों को मारने के लिए रूम में घुसे , पहले से घाट लगाये आतंकवादियों ने इनपर हथगोला फेंक दिया। बुरी तरह जख्मी कैप्टन सिंह बेहोश हो गए। ये वोही कैप्टन सिंह है जिसके जज्बे ने आतंकियों को मार गिराने में महती भूमिका निभाई थी। पुरे शरीर में बम के छर्रे घुस गए थे , लेकिन एक छर्रा इनकी आंख से भी पर निकल गया। आज दोनों , अजमल कसाव और कॅप्टन सिंह डॉक्टरों की देखरेख में हैं। एक अजमल कसाव है जिसे बचाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। होनी भी चाहिए क्योकि इससे जाँच में सहयोग मिलने की आशा है। देश के आला अफसरान और मंत्री अजमल कासव का हाल-चाल लेते चल रहे हैं। दूसरा है एक आम सिपाही जिसने देश की रक्षा के लिए सब कुछ लुटा दिया है। यहाँ तक की अपनी ऑंखें भी, अब वो कभी इस दुनिया को नही देख पायेगा। लेकिन उसे देखने भी तो कोई नही आ रहा है? न सेना के अधिकारी और न ही कमांडो दस्ते से कोई अधिकारी। बाकी रही नेताओं और मंत्रियों की बात तो भाई साहेब इनसे किसी प्रकार की आशा रखना निहायत बेवकूफी होगी। हाँ , कुछ देशभक्त लोगों से उम्मीद लगायी जा सकती है , जो इस वीर सिपाही की मदद करने की हिम्मत रखतें हैं। एक ही हमले से जुड़े दो लोगों की पहचान आपके सामने है। आप ख़ुद फैसला कर सकते हैं की किसकी जान हमें ज्यादा प्यारी होनी चाहिए। अजमल कासव की या कैप्टेन सिंह की। एक अजमल कासव है चोरी करते-करते आत्मघाती हमलावर बन गया। दूसरा वो है जिसकी चौडी छाती को देखकर सेना के जवान गर्व करते थे और उसके विशेस आग्रह पर इसी साल कैप्टेन सिंह कमांडो बने थे ताकि कासव जैसे सिरफिरों को उनके किए का अंजाम दे सके । लेकिन नियति को कुछ और ही मजूर था। आज दोनों एक साथ जीवन मृत्यु के बिच फंसे हैं। एक है जो जीना नही चाहता और दूसरा है जिसमे जीने का जज्बा तो है लेकिन परिस्थितियां शायद उसके पक्ष में नहीं लगाती। सवाल फिर से है की सुरक्षा से जुड़े लोगों और गृहमंत्रालय वाले इतने निष्टुर कैसे हो सकते हैं जो एक बार भी कॅप्टन सिंह से मिलने की नही जा सके। अगर हम इतनी जल्दी जल्दी अपने वीर सैनिकों को भुलाने लगे तो शायद ( भगवन न करे) अगले हमले में एक झुल्लू यादव भी देखने को न मिले।मादरे वतन पर यूँ ही , मिटते रहेंगे हमचाहे कोई फरियाद करे या न करे........जय भड़ास जय जय भड़ास

4 comments:

  1. भाई,हम सबका एक ही सपना है कि भड़ास एक दिन वेबपेज से निकल कर समाज में सांस ले ताकि आप जैसे लोग इन कड़वी सच्चाईयों को जानबूझ कर सोने का नाटक करते लोगॊं की पलकें चीर कर दिखा सकें। लिखिये और लिखिये। डा.रूपेश कह रहे थे कि यदि अपने मोबाइल फोन के कैमरे से हम कोई स्ट्रिंग आपरेशन कर सच सामने लाते हैं तो भड़ास से बेहतर मंच उसके लिये कोई दूसरा नहीं है बाकी सब तो गुडी-गुडी में ही गुलगुलाते रह्ते हैं।
    जय जय भड़ास

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  2. बहुत खूब मेरे बच्चे... मजबूत लिखा है
    जय जय भड़ास

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  3. बेहतरीन लिखा है भाई जी...

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  4. सच मगर कड़वा, देश के लिए मरने वालों का ये ही हश्र होता है, मेहता सरीखे लोग सिर्फ़ बयान बाजी करते हैं, नेता, सेना और दोगली मीडिया भी इस पर चुप्प ही रहेगी.

    लेकिन भडासी नही, जम कर पेलिए भाई, फार दीजिये सालों की.
    जय जय भड़ास

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