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जागो भारत जागो
जरा एक नजर हिन्दुस्तान के सीने धंसे हुए इस कील पर, देश का स्वाभिमान देश का बलिदान बताते हैं इसे, कहते हैं कि इस पर देश के लिए शहीद होने वालों के नाम हैं जिन्होंने देश के लिए शहादत दी, आमलोग आम होने का पुरा पुरा कर्तव्य निर्वहन करते हैं, मीडिया नेताओं के साथ सुर में सुर मिलाती हुई यहाँ के होने वाले परेड में अपने पत्रकारों की भी परेड करवाती है, मगर देश के सीने में धंसे हुए इस कील को उखारने के लिए कोई आवाज नही क्यूंकि मंगल पांडे, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, ये वोह लोग हैं जिन्होंने देश के लिए बलिदान नही दिया। बलिदान तो सिपाहियों और अंग्रेज की सेनाओं के उन जवानों ने दिया जो अंग्रेजों के लिए युद्ध लड़े। अंग्रेजियत का नशा ऐसा की आज भी हम अपने वीरों को नही अपितु अंग्रेज के उन पिट्ठुओं को सलामी देते हैं, क्यूंकि अंग्रेज के दलाल आज भी सत्तासीन हैं, जो अंग्रेजियत के विरोधी होने का दावा करते हैं उनके अंग्रेजों से माफीनामे का पत्र भी जग जाहिर है। हद तो तब जब कारगिल के शहीदों को भी अंग्रेजों के इन पिट्ठुओं की छाया दी गयी.
क्या आजाद भारत अपने सीने पर ठुके हुए इस कील को अंग्रेजियत का तगमा मन कर झेलता रहेगा, या गुलामी की जंजीर से आजाद करवाने वाले वीरों के लिए तगमा बनाएगा।
प्रश्न तमाम उन लोगों से जो अपने आप को भारतीय होने का दावा करते हैं, दंभ भरते हैं। हिंदू मुसलमान के नाम पर देश का तिया पांचा करते हैं, मगर बात जब जब राष्ट्रवाद की आती है तो इसे अपने धर्मग्रंथों में उलझा देते हैं।
जागो भारत जागो
जय हिंद
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