ना ही मैं एक पत्रकार हूँ और न ही समाजसेवक ......ना ही मैं संवेदनशीलता जताने का इरादा रखता हूँ और ना ही बुद्धिजीवी होने का एहसास है.........
यूँ ही अचानक चलते चलते जो कुछ भी दीखता है ....कह देने का मन करता है......
विषय बहुत हैं......लोग भी बहुत हैं......लेकिन मेरा नजरिया सिर्फ़ मेरा है..........
उम्मीद है की लोग मेरे नज़रिए पर अपना विचार रखेंगे....आलोचना, समालोचना या फ़िर प्रसंसा कुछ भी.....लेकिन मैं कहूँगा वोही जो मेरे नज़रिए से मुझे लगेगा की कहना चाहिए !!!!
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जो देखता हूँ, कहे बीना रहा नही जाता........
ना ही मैं एक पत्रकार हूँ और न ही समाजसेवक ......ना ही मैं संवेदनशीलता जताने का इरादा रखता हूँ और ना ही बुद्धिजीवी होने का एहसास है.........
यूँ ही अचानक चलते चलते जो कुछ भी दीखता है ....कह देने का मन करता है......
विषय बहुत हैं......लोग भी बहुत हैं......लेकिन मेरा नजरिया सिर्फ़ मेरा है..........
उम्मीद है की लोग मेरे नज़रिए पर अपना विचार रखेंगे....आलोचना, समालोचना या फ़िर प्रसंसा कुछ भी.....लेकिन मैं कहूँगा वोही जो मेरे नज़रिए से मुझे लगेगा की कहना चाहिए !!!!
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विषय बहुत हैं......लोग भी बहुत हैं......लेकिन मेरा नजरिया सिर्फ़ मेरा है..........
उम्मीद है की लोग मेरे नज़रिए पर अपना विचार रखेंगे....आलोचना, समालोचना या फ़िर प्रसंसा कुछ भी.....लेकिन मैं कहूँगा वोही जो मेरे नज़रिए से मुझे लगेगा की कहना चाहिए !!!!
जो देखता हूँ, कहे बीना रहा नही जाता........
ना ही मैं एक पत्रकार हूँ और न ही समाजसेवक ......ना ही मैं संवेदनशीलता जताने का इरादा रखता हूँ और ना ही बुद्धिजीवी होने का एहसास है.........
यूँ ही अचानक चलते चलते जो कुछ भी दीखता है ....कह देने का मन करता है......
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उम्मीद है की लोग मेरे नज़रिए पर अपना विचार रखेंगे....आलोचना, समालोचना या फ़िर प्रसंसा कुछ भी.....लेकिन मैं कहूँगा वोही जो मेरे नज़रिए से मुझे लगेगा की कहना चाहिए !!!!
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विषय बहुत हैं......लोग भी बहुत हैं......लेकिन मेरा नजरिया सिर्फ़ मेरा है..........
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बम धमाके के बाद की मुस्तैदी
अभी अभी दिल्ली में क्रमवार बम फूटे, मरने वालों का आंकडा मीडिया और प्रशासन की माने तो बीस है और घायल सौ के करीब। आतंक के निशाने पर देश की राजधानी आज से नही थी मगर सरकार की सुरक्षा इंतजामों के डापोरशंखी नाद को फोरते हुए आतंकियों ने अपने कार्य को अंजाम दे ही दिया।कई जगह हुए धमाके में से एक दिल्ली का दिल कनाटप्लेस भी था जहाँ मैं ख़ुद मौजूद था। धमाके की सुचना जैसे ही फ़ैली अखबारनवीसों के खिलते चेहरे का चश्मदीद गवाह भी। धमाके के बाद पोलिस और मीडिया जनों की मुस्तैदी देखने लायक थी, आखिर दोनों में यही तो समानता है की घटना होने के तुंरत बाद ही दोनों मुस्तैद होते हैं, एक को खानापूर्ति करनी होती है तो दुसरे को ख़बर को बेचने की जल्दी। मुस्तैदी और कर्तव्य परायणता की कुछ झलकियाँ भी इन तस्वीरों के बहाने
संवेदनशीलता की पराकाष्ठा, मगर किसके लिए ?
घटना के वक्त मैं एक प्रतिष्ठित अखबार के सम्पादकीय में था और गवाह उसका कि इस धमाके को कैसे अखबारनवीस कैश कर सकते हैं, सबको फिकर कि कोई मुद्दा छुट ना जाए।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है, बिहार में कोशी का पानी उतरा और उतर गयी मीडिया के सर से कोशी का भूत. क्यूंकि बिकाऊ बाढ़ का पानी था बाढ़ की बाद अन्न अन्न को तरसते लोग नहीं.बिहार के बाढ़ के प्रति मीडिया, प्रशासन और विकाश पुरुष कि संवेदनशीलता का इन्तेजार कीजिये। अगले लेख में.