नौनिहाल का जेहाद

काज का तूफ़ान है की थमने का नाम नही ले रहा है, और इसी रोजी रोटी के लिए यदा कदा यहाँ वहां भटकता रहता हूँ। अभी हप्ते दिन पहले की बात है मैं दिल्ली में था और रोज ही नोएडा के फेस टू तक का सफर दक्षिण दिल्ली से कर रहा था कारण वो ही कि पापी पेट का सवाल है।
नॉएडा का फेस टू ओद्योगिक इलाका है चारो तरफ़ फैक्ट्री हि फैक्ट्री और इनके साथ लगे दीवालों के नीचे इनमें काम करने वाले मजदूर और उनका परिवार। मैं रोज ही संध्या काल में कार्यालय से बाहर आता सुट्टा के बहाने और रोज ही इस छोटे बच्चे से मिलता। आप भी देखें.....

पढने की ललक , सुविधा का आभाव चलो दिन के उजाले में पढ़ लें...........

आशियाना आसमान से ऊपर


ये है इस मासूम का ठिकाना जहाँ घर के नाम पर ये चंद पोलीथिन के छत खेलने के लिए सड़क और पढने के लिए सड़क के साथ सूर्य भगवान् की कृपा, अगर बारिश तो इस बेचारे का पढने का हर्जा होना।
सरकार के बाल विकास और बाल शिक्षा की पोल खोलती ये तस्वीर ही बयां करती है की हमारे कार्यक्रम किस प्रकार नेता और समबन्धित अधिकारी से होते हुए मीडिया का जेब गर्म करते हुए अपने मुकाम तक पहूंचता है यानी की वार्षिक रिपोर्ट योजना के सफलतम होने की घोषणा के साथ ही, मगर मेरा ये छुटकू अपने अधिकारों से अनजान अपनी जद्दोजहद इस सड़क की चटाई पर सूर्य की रोशिनी में जारी रखे हुए है,
क्या इस तरह से युद्ध जीतने वाले योद्धा पर सरकार को गर्व करने का हक है?
इस तरह से अपने मुकाम पाने वाले वीरों पर देश की जानता कैसे अपना अधिकार बता सकती है।

सांसद का चुनाव

दोस्तों मुझे एक मेल मिला जो किसी अनाम मित्र का था जिसमें आम जन के जागरूक होने से सम्बंधित कार्टून बने थे मुझे लगा की इसे मेरे ब्लॉग पर होना चाहिए सो अपने उस अनाम मित्र के साभार इस बेहतरीन कार्टून को आप के लिए भी.....

क्या आप ऐसे सांसदों के हाथों में राष्ट्रध्वज देखना पसंद करेंगे





या फ़िर बागडोर ऐसे सांसदों के पास।

सच्चे नागरिक होने का दायित्व निभाएं और चुनाव मतदान में अवश्य भाग लें क्यूंकि मुझे आपको हमें ही अपना प्रतिनिधि चुनना है। हमारा प्रतिनिधि हमारे लिए हमारे जैसा ना की मीडिया के प्रचार से बनाया गया स्वच्छ छवि वाला क्यूंकि एक मीडिया समूह इन सांसदों के हाथों का दलाल पहले ही बन चुका है, खरीद फरोख्त में एक शानदार कमीशन लेकर.

साभार : मॉस फॉर अवेरनेस

दिल्ली पुलिस और ब्लू लाइन

दिल्ली और ब्लू लाइन एक दुसरे का पर्याय है, बिना ब्लू लाइन के दिल्ली ऐसी लगेगी जैसे सधवा के मांग से सिंदूर हटा दिया गया हो, सच कहूं तो लोगों का जीना मुहाल हो जाए और दिल्ली सरकार की डी टी सी यानी की या तो बस ही ना आए ओए यदि गलती से आ भी जाए तो किस्मत आपकी ड्राइवरआपको चढ़ाएगा की नही। खैर ये तो बातें बसों की मैं बता रहा था की आप दिल्ली में हों और ब्लू लाइन की सेवा ले रहें हैं गरमी हो या बरसात आपको जल्दी हो या न हो मगर इन तस्वीर को देखिये, दिल्ली पोलिस के इन प्रहरियों को आम जन से कोई लेना देना नही, बस रोकी हील हुज्जत रोज का ड्रामा बस एक पत्ती और बस को हरी झंडी, अगर ज्यादा चूं चपड़ तो फ़िर रुके रहो भाई क्योँ की ये दिल्ली पोलिस है, आपकी सेवा में हमेशा आपके लिए तत्पर, बस पत्ती होनी चाहिए।

जरा इस तस्वीर को देखिये हम भी इसी बस में थे, बस के ड्राइवर और कंडेक्टर ने पत्ती देने से मना कर दिया कारण साफ़ था की दोनों पुरे युनिफोर्म में थे और सभी कागजात भी पुरे थे सो जिच दोनों तरफ़ और बीच में पीसने वाली गरीब दिल्ली की जनता, क्या करें दिल्ली की एलिट क्लास की मुख्यमंत्री और राज्यपाल महोदय को हमारा पिसना जो नही दिखता है, हाँ यहाँ के लोगों की खामियां मीडिया के सामने बताने में परहेज नहीआख़िर इसी बहने अपने खामियों को जो छुपाना है.

वो कहते हैं हम बदतमीज हैं

अभी कुह दिन पूर्व दिल्ली में था, बस पकड़ने के लिए दक्षिण दिल्ली के एक पोश इलाके के बस स्टैंड पर खड़ा था तो स्टैंड के पास के नजारे ने कुछ दिनों पूर्व के मुख्यमन्त्री और राज्यपाल के वक्तव्य को याद दिला गया।शहरी मुख्यमन्त्री और अनुशाषित राज्यपाल को लगता था की सम्पूर्ण उत्तर भारतीय नियम कानून को ताक पर रख कर चलते हैं और इनके सरकार चलाने में रोड़ा अटकाते हैं। तुलना की दक्षिण के लोग बड़े सुशिक्षित होते हैं और कायदे कानून वाले भी, तात्पर्य सिर्फ़ इतना की देश की राजधानी के सर्वेसर्वा जहाँ लोगों को सर्टिफिकेट दे रहे थे वहीँ उत्तर और दक्षिण के नाम पर विभेद भी।

जरा इस तस्वीर को देखिये , दक्षिण दिल्ली के पोश इलाके के बस स्टैंड का है, ठीक सामने बड़ा सा गड्ढा, गड्ढा इतना बड़ा की एक छ: फुट का आदमी समां जाए, सोचिये रात का समय हो और लोग बस पकड़ने के लिए स्टैंड से नीचे आयें आगे अल्लाह ही मालिक है क्या इस तस्वीर के बाद भी लोगों से अपेक्षा की वोह बस स्टैंड पर बैठ कर बस आने के बाद गड्ढे में जाने का इन्तेजार करें।
वो कहते हैं हम बदतमीज हैं हमें सभ्य समाज में रहना नही आता हम कहते हैं हमारे दम पर सरकार बनाने वालों तुम्हें सरकार चलाना नही आता।