दो घंटे का सफर पाँच घंटे में,संग ही लोकप्रिय संगीत का आनंद.

घर आए थे तो विचार की दादा दादी से भी मिल लें, बुढे हैं पता नहीं फ़िर मिलना हो की नही सो मधुबनी से गाँव चला, लोगों ने बताया की सड़क ख़राब है अपनी गाड़ी के बजाय आप कैब ले लें । मधुबनी से मेरा गाँव ५० किलोमीटर पर अवस्थित है और इस यात्रा का छोटा सा आनंद आप भी लीजिये की कैसे मैने ५० किलो मीटर की दूरी ५ घंटे में तय की संग ही संगीत का आनंद भी। सच में गाँव का सफर एक अद्भुत और रोचक अनुभव होता है सो शायद आपको भी इसे देख कर गाँव की याद आ जाए।

धन्यवाद ।

बिहार विकास की एक झलक.........

अभी मैं मुंबई में था, छुट्टी मिली तो घर चला, चलते वखत दिल में हसरत की सुन रखा है नीतिश सरकार विकास की बात करती है औरर विकास कार्य में लगी हुई है सो जिज्ञासा इस विकास को देखने की। जो विकास मैने देखा आपसे साझा करता हूँ कुछ तसवीरों के बहाने....................................................





बिहार का सबसे बड़ा शहर मुजफ्फरपुर और वहां की सड़क

इसी बस में मैं था और मुजफ्फरपुर में जाम में पाँच घंटे बिताये


सड़क तो जाम सड़क के नीचे कीचड़ का जाम मैं किधर से जाऊं


सत्ताधारी पार्टी के पार्षद के निवास का जलमग्न मार्ग, पार्षद तो अपनी सवारी से चले जायेंगे आम जन का क्या ? दरभंगा.......


सत्ताधारी पार्टी के पार्षद का निवास जलमग्न, दरभंगा....................


दरभंगा बिहार का एक और बड़ा शहर, और ये दरभंगा का बस स्टैंड, अगर आको यहाँ आना है तो सोचिये की कैसे आयेंगे और अगर बाहर से आप यहाँ आए तो अपने घर को कैसे जायेंगे।

ये है विकाश पुरुष कि कुछ झलकियां, पत्रकारों के सहारे शानदार विकास किया है नितिश सरकार ने, इसकी जीवन्त झलकियों का भी इन्तेजार करें।

धन्यवाद

राजनैतिक नेतृत्व का सफल इम्तिहान.

छत्रछाया से बाहर निकले सरदार
कल का दिन भले ही लोकसभा में उथल पुथल भरा रहा, आरोप और प्रत्यारोप के साथ संसद की गरिमा भी तार तार हुई, मगर इन सभी के आदि हो चुके नेता और जनता के लिए लिये ये बात एक घटना से अधिक ना थी । कुछ नया और अदभुत था तो वो हमारे प्रधान मंत्री का करिश्मा.बेहद नाटकीय घटना क्रम में डाकटर मनमोहन सिंह ने जिस कुशलता और राजनैतिक कौशल से अपने नेतृत्व गुण का लोहा मनवाया ने सच में बहुतों बडे दिग्गजों ओर धाकडों के होश उडा दिये होंगे। सबसे बडा ओर जोरदार तमाचा तो आडवानी के साथ तमाम विपक्षी के गाल पर कि एक छोटा सा दिखने वाला अदना सा मैडम के साये के साथ चलने वाला एक कुशल राजनेता कैसे हो गया। भाइयों वो कहावत है कि गुरु गुड ओर चेला चिन्नी। पुर्व प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव के चेले ने साबित कर दिखाया कि वो सिर्फ़ एक अर्थसाश्त्री ही नही वरन आज के दौर का कुशल राजनेता बन चुका है। हथकन्डों के साथ संसद में पहुंचे सांसदों के सारे हथकन्डे धरे के धरे रह गये ओर छोटा सरदार सब पर भारी पडा।
आडवाणी जी गाल सहला रहे होंगे ओर करात की साढे चार साल की चिख चिख सौदेबाजी का भी अन्त। खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे, आज के लोन्डे नेता ओर सांसद बडे दादा को राजनीति का पाठ दे रहें हैं।
वाह रे भारत, वाह रे भारतीय राजनीति ओर वाह रे हमारे देश के कर्णधार नेता।

मीडिया,पुलिस-प्रशासन,और राजनेता की डेरा मुद्दा पर संदेहास्पद भूमिका.

साह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सिरसा

विगत दिनों एक बार फ़िर से डेरा सच्चा सौदा विवाद के साए में रहा, चिंगारी अभी भी सुलग रही है, और अलगाववादी ताकत जानते हैं की चिंगारी को हवा कब देनी है।
डेरा विवाद ने आम जनों के मन में एक बार फ़िर से डेरा के लिए नकारात्मन सोच को बढाया है, क्यूंकि उपद्रव का कारण डेरा का भजन कीर्तन रहा और हमारे देश में धर्म कर्म की प्रधानता होते हुए भी धार्मिक कट्टरपंथ सबसे ऊपर रहा है। चाहे वो राम मन्दिर विवाद हो या धर्म परिवर्तन का मामला, मठाधीशों ने हमेशा इस पर प्रश्नचिन्ह लगाया है क्यूंकि सर्व धर्म समभाव और आपसी भाई चारा इन मठाधीशों के लिए हमेशा से ही खतरा रहा है।
हिन्दुस्तान के संविधान के मुताबिक सर्वोपरी सर्वधर्म समभाव , वसुधैव कुटुम्बकम, अतिथि देवो भावः मगर क्या ये भाव हमारे धार्मिक मठाधीशों में है।
हाल के डबवाली का ही विवाद लें , जिस प्रकार से इसे आम जनों के बीच पडोसा गया यों लगा कि डेरा एक आतंकी संस्था है और इसके अनुयायी आतंकी हैं। जबकि इसके बारे में राय रखनेवाले लोग एक विशुद्ध भारतीय कि तरह बिना जाने अपनी राय रखना शानो शौकत समझते हैं। कुछ समय पूर्व तक मेरी भी कुछ इसी ही राय डेरा के बारे में हुआ करती थी। मगर ये चर्चा बाद में।
बहरहाल डबवाली काण्ड में जिसतरह पोलिस और प्रशासन आँख मूंद कर राजनीति के गलियारों के गुरूजी को खुश करते हुए ताम झाम के साथ मूक दर्शक बने रहे वहीँ सबसे ज्यादा कमाल तो हमारे मीडिया और मीडिया मित्रों का रहा। सनसनी और उत्तेजना के साथ बिकाऊ ख़बर बनाने के लिए आपको पत्रकारिता करनी बिल्कुल जरूरी नही है, ख़बर के तह तक जाने कि कोई जरुरत नही है, टेबल रिपोर्टिंग बैठ कर फोन घुमाया राय ली और लगा दी ख़बर, आख़िर इसी कारण तो दारु और मुर्गा फ्री होता है। मुझे नही लगता कि डेरा पर रिपोर्टिंग करने वाले किसी पत्रकार ने डेरा को समझने कि कोशिश कि है। नही तो लोग ख़बरों के साथ साथ विवाद के दोनों पक्ष से भी अवगत हुए रहते।
विशेष विवरण और डेरा फ़िर लिखूंगा।