बेनजीर, राजनीतिक हत्या कि एक और कड़ी।



कल शाम बेनजीर की हत्या फ़िरकापरस्त ताक़तों ने कर दी, एक बार फिर एक सवाल विश्व समाज के सामने आतंकवाद का रह गया कि आखिर कब तक ?
बेनजीर के जाने के बाद जो ख़ालीपन दक्षिण और पश्चिम के रिश्ते में आया है उसको भरने में काफी समय लगेगा। ये जग जाहिर है कि बेनजीर अमेरिका और इंग्लैंड के काफी करीब थीं और दक्षिण-पश्चिम के लिए एक कड़ी कि तरह थीं। समय बलवान होता है नई कड़ी आयेगी ज़रूर मगर उसके वक्त का पता नही और कहीं भी नए रिश्ते समय लेते हैं।
बहरहाल पाकिस्तान में लोकतंत्र की नयी पौध पर एक बार फिर ग्रहण छा गया है और हम उस ग्रहण के हटने कि दुआ कर सकते हैं।

कहाँ से शुरू करूं !


मित्रवर मेरी पहली रूचि हमेशा से लेखन में रही, परन्तु मैं अपने इस पसंदीदा रूचि को बरक़रार नही रख सका, कारण जो भी रहा हो परन्तु अपने इस रूचि से महरूम होना मुझे हमेशा से सालता रहा। परन्तु अब और नही ! शुरुआत मुझे करनी है और कल करे सो आज कर आज करे सो अब !
बन्धुवर मैं अपनी लेखनी को एक नया आयाम देना चाहता हूँ अपने विचारों को अंकित करना चाहता हूँ और समग्रता को समेटना चाहता हूँ। जानता हूँ ये कठिन है पर असंभव नही और आपके सहयोग कि दरकार है।
सहयोग अपेक्षित है।
सधन्यवाद,
रजनीश झा।